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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
वह वहां रखी एक ‘सेही’ पर बैठ गई और विचार करने लगी कि अब क्या हो सकता है और वह क्या कर सकती है। वह अभी तक समझ नहीं सकी थी वह किसकी बन्दिनी है। वह पाकिस्तान की बन्दिनी है अथवा भारत सरकार की ‘सीक्रेट पुलिस’ की। यदि उसको बन्दी करने वाले पाकिस्तानी हैं तब तो, वह समझ रही थी कि उसे अचेत कर किसी न किसी प्रकार ‘स्मगल’ कर पाकिस्तान ले जाने का यत्न किया जायेगा। और यदि वह भारत सरकार के अधिकारियों के बन्दीगृह में है तो क्यों है और वे उससे क्या व्यवहार करने वाले हैं? इन प्रश्नों की उलझन में फंसी हुई वह विचार करने लगी तो रात का अन्धेरा हो गया। उसने कलाई पर बंधी घड़ी में समय देखा तो रात के साढ़े सात बजे थे उसे इस मकान में आये तीन घण्टे से ऊपर हो चुके थे।
कमरे में अन्धेरा हो रहा था। उसने टटोल कर बिजली के स्विच बोर्ड पर स्विचों को दबा कमरे में रोशनी कर ली।
अब अपने मस्तिष्क को भविष्य की अनिश्चितता से निकालने के लिए वह कमरे में लगे सामान को देखने लगी। यह किसी शौकीन व्यक्ति का बैड रूम था। बहुत सज़ा हुआ था। दो बैड लगे थे। इससे प्रकट होता था कि किसी दम्पति का है। कमरे की दीवारों पर नग्न स्त्री-पुरुषों के चित्र लगे थे और कमरे में ही वार्ड-रोब तथा किसी विवाहित स्त्री-पुरुष के सुख पूर्वक रहने का सब सामान था।
कमरे में फरनीचर और कालीन बिछा देखकर तथा विद्युत के हण्डों को देखकर वह समझ रही थी कि किसी धनी-मानी का यह शयनागार है।
इस देख-भाल को करते हुए उसने वार्ड-रोज खा दरवाज़ा खोला तो उसके विस्मय का ठिकाना नहीं रहा जब उसने उसमें अपना सूटकेस रखा देखा। उसे समझ आया कि उसे इस बैड रूम में बन्दी बनाने की योजना उसी समय थी जब उसे बंगले में लाया गया था।
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