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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘तो याद नहीं आ रहा?’’
‘‘अभी तक याद नहीं कर सका।’’
‘‘कल आप जनरल कौल से मिलने आये थे। तब मैं भी वहां उनसे भेंट के लिए प्रतीक्षा कर रहा था। आपको वहां से नेफा में किसी अधिकारी के नाम पत्र मिला है।’’
‘‘जी हां।’’
‘‘मुझे उसकी ‘कापी’ मिली है।’’
‘‘अभिप्राय यह कि वह पत्र आपके नाम है?’’
‘‘हां! मैं गौहाटी क्षेत्र में सी० ओ० हूं। मैं विचार कर रहा था कि जब कल आप मुझे वह पत्र दिखायेंगे तो आप मुझे वह पत्र लेता देख विस्मय करेंगे, परन्तु बात तो अभी हो गई है।’’
‘‘परन्तु मुझे अभी विस्मय कम नहीं हुआ। तो आप लेफ्टिनेण्ट कर्नल जसवन्तसिंह है? वह पत्र तो मैं आपको वहां चलकर ही दूंगा। इस पर भी आपसे यहां अब पहचान हो जाने से प्रसन्नता हुई है।’’
इस समय ब्रेक-फास्ट यात्रियों के सामने लगा दिया गया। तेजकृष्ण ने अपनी ट्रे पर से सैण्डिवच उठाते हुए कहा, ‘‘अब तो आप जान ही गये हैं कि मैं किस प्रयोजन से उस सीमावर्ती देश में जा रहा हूं?’’
‘‘कौल साहब फर्स्ट क्लास प्रोपगैण्डिस्ट हैं। यही कारण है कि भूमण्डल में ख्याति प्राप्त समाचार-पत्र के प्रतिनिधि को यह सुविधा देकर वह अपने को एक चतुर कमाण्डर सिद्ध करना चाहते हैं।’’
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