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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
तेजकृष्ण सामने रखे आमलेट पर टोमाटो-सास डाल उस पर उसे फैलाते हुए विस्मय में मिस्टर सी० ओ० की ओर देखकर पूछने लगा, ‘‘तो क्या वह एक योग्य और चतुर कमाण्डर नहीं है?’’
‘‘मैं कौल साहब की काबलीयत पर टीका-टिप्पणी नहीं कर रहा। मैं तो उनकी अपनी पब्लिसिटी की योग्यता की बात कर रहा हूं।’’
‘‘परन्तु पण्डित नेहरू ने तो इनके विषय में बहुत ही बढ़िया सर्टिफिकेट भारत की पार्लियामेंट में दिया था।’’
‘‘तब तो कौल साहब अवश्य ही बहुत योग्य अधिकारी माने जाने चाहियें। पण्डित नेहरू के सर्टिफिकेट के उपरान्त किसी को सन्देह नहीं करना चाहिए। परन्तु मैं तो कौल साहब के राजनीतिक नेताओं की भांति अपनी बात की डुग्गी पीटने के स्वभाव की बात कह रहा हूं और मैं उस स्वभाव की प्रशंसा कर रहा हूँ।’’
तेजकृष्ण की समझ आया कि साथ बैठा अफसर अपने से ऊंचे रैंक के अधिकारी की हंसी उड़ा रहा है। इस कारण उसने बात बदल दी।
उसने पूछा, ‘‘गोहाटी से आगे जाने का क्या प्रबन्ध होगा?’’
‘‘आप कहां तक जाना चाहते हैं?’’
‘‘मैं मैकमोहन सीमा रेखा तक जाना चाहता हूं और देखना चाहता हूं कि मिस्टर मैकमोहन कितना योग्य व्यक्ति था। यह उस रेखा के क्षेत्र को देखकर ही पता चलेगा।’’
‘‘परन्तु रेखा से इस ओर चीनी कई स्थानों पर आगे बढ़ अपनी चौकियां बना चुके है।’’
‘‘इस पर भी भारत के अधिकार में कुछ तो क्षेत्र है। वहां से भी कुछ तो पता चल ही जाएगा।’’
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