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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘परन्तु हम यहां से ल्हासा जायेंगे क्या?’’
‘‘नहीं! प्रातः हम दूसरे मार्ग से भारत में प्रवेश कर जायेंगे।’’
कुछ देर तक गोलियां चलतीं रहीं और फिर शान्त हो गयीं। गाइड ने तेज को दूर टॉर्च के प्रकाश में कुछ लोग दक्षिण की ओर जाते दिखाये। तेज समझ गया कि गाइड एक अनुभवी गुप्तचर है।
प्रातःकाल होने तक वे शिविर से दूर पर्वतों में विलीन हो गये थे। उनको अब शिविर दिखाई नहीं देता था। शिविर वाले भी उनको देख नहीं सकते थे।
अब उन्होंने एक नाले के किनारे बैठकर विश्राम किया। बारी-बारी से कुछ सोये भी। एक प्रहर दिन चढ़ने पर वे खा-पीकर पुनः चल पड़े। पहले वे पश्चिम को जा रहे थे। अब उन्होंने मुख दक्षिण को कर लिया।
गाइड से तेज़ ने पूछा, ‘‘तुम किसकी नौकरी में हो, पाकिस्तान की अथवा चीन की?’’
‘‘दोनों की नहीं! मिस्टर टॉम हमारे नेता है और हम तिब्बत, सिक्किम, नेपाल और भारत में तस्करी का काम करते हैं। इस तस्करी के लाभ का भाग हम सैनिक अधिकारी को भी देते रहते हैं। यही कारण है कि वे सब हमारे चिह्न को जानते हैं और मैं समझता हूं कि यदि आक्रमण की सूचना अभी छुपाने की आवश्यकता न होती तो हम दो-तीन दिन तक घूम-फिर सकते थे।’’
‘‘मैं तो आशा कर रहा था कि हमें तुरन्त गोली से उड़ा यमलोक पहुंचा दिया जाएगा। उस ‘हट’ में लेटे-लेटे मुझे यह आशा थी कि अगले दिन हमें मृत्यु दण्ड मिल जाएगा।’’
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