लोगों की राय

उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595
आईएसबीएन :9781613010143

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

203 पाठक हैं

जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


तेजकृष्ण का गाइड बता रहा था, ‘‘हम नेपाल से भूटान और वहां से असम और फिर शिलांग पहुंच जायेंगे।’’ लौटने में दो दिन से अधिक लगने वाले थे। वे लम्बे रास्ते से लौट रहे थे।

एक दिन चलते-चलते वे ऐसे स्थान पर पहुंच गये थे जहां से पांव नीचे को खिसकते अनुभव होने लगे। नीचे कई सौ फुट की तीखी ढलान थी और तल पर शर्र-शर्र तथा गर्र-गर्र करती नदी, और दूसरी ओर गगन-भेदी हिमाच्छादित पर्वत। एकाएक भूमि पर बैठ हाथों से भूमि पर अपने को स्थिर करते हुए तेजकृष्ण के मुख से निकल गया, ‘‘यह कहां मृत्यु के घेरे में ले आये हो?’’

गाइड ने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘बस, थोड़ा-सा मार्ग ही ऐसा है। आधा मील के लगभग हमें रेंग-रेंग कर चलना पड़ेगा। इस पर्वत का चक्कर काटते ही हम पांच-दस घर की एक बस्ती में पहुंच जायेंगे। वहां चाय मिल जाएगी और यदि हमारा कोई साथी मिल गया तो एक प्याला कॉफ़ी का भी मिल सकेगा।’’

इस आशा पर कि आधा मील के अन्तर पर गरम-गरम चाय उनकी प्रतीक्षा कर रही है, तेजकृष्ण के मन में उत्साह बढ़ गया और वह पांव और हाथों के बल पर बकरी की भांति चलने लगा। आधा मील से कुछ कम ही जाना पड़ा। इतना मार्ग चलने में भी इनको दो घण्टे लगे। तेज की पतलून और कोट चट्टानों पर रेंगते हुए कई स्थानों पर फट गए थे।

ज्यों ही ये पर्वत का चक्कर काट कर दूसरी ओर पहुंचे तो इन को बिखरे हुए तीन-चार मकान दिखाई दिये। साथ ही सूर्य के प्रकाश और ऊष्मा से सुख अनुभव हुआ। ज्यों ही मार्ग कम ढालू हुआ कि तीनों पांवों पर खड़े हो गए। गाइड अपने साथियों की ओर घूमकर मुस्कराता हुआ देखने लगा। उनका उत्साह बढ़ाने के लिए बोला, ‘‘वह स्लेट की छत वाला मकान हमारा है वह नेपाल भूटान की सीमा पर है और हम सुरक्षित हैं।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book