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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
वह परीक्षक जो इस निश्चय के पक्ष में नहीं था, उससे कहा गया कि वह अन्य चार के निर्णय के विरुद्ध अपनी सम्मति और उसमें कारण लिखकर दे दे तो उसने कहा, ‘‘मैं लिखकर कुछ नहीं दूँगा। केवल यह चाहता हूं कि मेरा इस निर्णय में विरोध लिखा जाये।’’
वैसा ही लिख दिया गया और यह निश्चय ‘अकैडैमिक कौंसिल’ के पास गया तो मैत्रेयी को पी० एच० डी० की उपाधि मिल गई।
अब एक दिन मिस्टर साइमन मैत्रेयी से मिलने आया और कहने लगा, ‘‘मैत्रेयी! मैंने एक बार यह इच्छा प्रकट थी कि मैं तुमसे ‘वैडलॉक’ द्वारा सम्बन्धित होकर बहुत सुख और शान्ति अनुभव करूंगा। जहां तक मैं समझ सका था तुमने मेरी इच्छा का विरोध नहीं किया था। तब तुम्हारे निबन्ध पर संशोधन हो रहा था। मैंने अपने इस प्रस्ताव को डिग्री मिल जाने तक स्थागित रखा था। क्या मैं आशा कर सकता हूं कि तुम मुझे स्वीकृति दोगी कि मैं विवाह का प्रबन्ध करूं?’’
‘‘आपकी आयु कितनी है?’’
‘‘इस समय बावन वर्ष का हूं?’’
‘‘और मैं पच्चीस वर्ष से कुछ ऊपर हूं। क्या आप आयु का अन्तर कुछ अधिक नहीं मानते?’’
‘‘तो तुम्हारी दृष्टि में कोई समवयस्क व्यक्ति है जिससे तुम विवाह करना चाहती हो?’’
‘‘मैं विवाह की इच्छा नहीं रखती। यदि आप आग्रह करेंगे तो मैं मान जाऊंगी। मुझे कुछ अन्तर नहीं पड़ेगा। परन्तु अन्तर आपके लिए पड़ सकता है। क्या विवाह का ‘स्ट्रेन’ (दबाव) आपका वर्तमान स्वास्थ्य सहन कर सकेगा?’’
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