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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘यही बात तुमने तब भी कही थी। इसका अर्थ मैं यह समझा था कि तुम मुझसे विवाह कर लोगी। जिसमे इच्छा शून्य के बराबर है उसको जो कुछ मिले, वह स्वीकार हो जायेगा।’’
‘‘तो आप घोषणा कर दीजिए। मैं आपका कहा टाल नहीं सकती।
‘‘तो विवाह किस विधि-विधान से होगा?’’
‘‘मैं समझती हूं कि कोर्ट में ‘डिक्लेयर’ कर हम ‘मैन ऐण्ड वाइफ’ बन जायेंगे।’’
‘‘मिस्टर जौन साइमन पी-एच० डी० लिट्० सीनियर प्रोफ़ेसर आफ इण्डौलोजी ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और श्रीमती मैत्रेयी सारस्वत आपको सपरिवार अपने वैडिंग डिनर पर दिनांक १० मई सन् १९६३ को रात आठ बजे कार्ल्टन होटल के रिसैप्शन हॉल में आमन्त्रित करते हैं।’’
यह निमन्त्रण-पत्र छपवा कर विश्वविद्यालय के कुछ प्राध्यापकों तथा कुछ बाहर के परिचितों के पास भेज दिया गया। निमन्त्रण-पत्र पढ़ने वालों को विस्मय तो हुआ, परन्तु इस विस्मय में कारण आयु का इतना नहीं था जितना कि साधु स्वभाव मिस्टर साइमन का एक हिन्दुस्तानी लड़की से विवाह करना था। उसके प्रायः परिचित समझते थे कि वह तो कभी किसी लड़की के साथ प्रेम-प्रलाप करता नहीं देखा गया। जब कभी किसी लड़की ने उसको ‘सिड्यूस’ करने का यत्न किया, तो वह कह दिया करता था, ‘‘मैडम! तुम्हें कुछ धन की आवश्यकता है तो बताओ कितना चाहिए? यदि मेरे पास उतना देने की सामर्थ्य हुई तो ऐसे ही दे दूंगा।’’
इससे लोग यह समझते थे कि वह एक विरक्त स्वभाव का व्यक्ति है। अब यह निमन्त्रण पढ़ मित्रगण यह समझे कि लड़की ने प्रोफ़ेसर को पथच्युत किया है। इस पर तो विश्वविद्यालय के एक मनचले विद्यार्थी ने मैत्रेयी से मिलकर कहा, ‘‘मैत्रेयी जी! यह आपने क्या किया है? आप जैसी सुन्दर, सभ्य, सुशील और विदुषी लड़की के लिए तो कोई भी युवक विवाह के लिए तैयार हो सकता है। उदाहरण के रूप में अपने परीक्षा-फल की प्रतीक्षा में था। मैं अपना प्रस्ताव परीक्षा-फल घोषित होने के उपरान्त करने वाला था।’’
मैत्रेयी मुस्करा कर चुप रही। जब युवक ने यह प्रस्ताव किया कि वह प्रोफ़ेसर साइमन से अपने ‘वर्ड’ वापस ले ले तो मैत्रेयी ने पूछ लिया, ‘‘मुझसे विवाह कर आपको क्या मिलेगा?’’
‘‘ए यंग ब्यूटीफुल ऐजुकेटिड ऐण्ड सिविलाइज़्ड वाइफ।’’
‘‘मैं समझती हूं कि मिस्टर साइमन इन सब बातों में आपसे बढ़कर है।’’
‘‘यौवन में भी?’’
‘‘यह मदात्य का लक्षण है।’’
मैत्रेयी ने एक निमन्त्रण-पत्र मिसेज यशोदा बागड़िया को लन्दन के पते पर भी भेजा। परन्तु जिस दिन यह कार्ड यशोदा को मिला उस दिन मिस्टर बागड़िया को ‘लन्दन टाइम्स’ के कार्यालय से यह समाचार मिला कि तेजकृष्ण का पता मिल गया है। वह इस समय गोहाटी जेल में है। उसको वहां से निकालने का यत्न किया जा रहा है।
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