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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘हां!’’ इस प्रश्न पर यशोदा को कुछ गड़बड़ अनुभव हुई। उसका ध्यान मैत्रेयी की वेश-भूषा पर चला गया। उसने देखा कि उस पर कोई भी तो लक्षण ‘ब्राईड’ के नहीं हैं। इससे वह प्रश्न भरी दृष्टि से उस स्त्री का मुख देखने लगी। बात उसी स्त्री ने ही की। उसने कहा, ‘आज बारह बजे कोर्ट में विवाह होने वाला था, परन्तु नहीं हुआ।’’
‘‘ओह!’’ यशोदा के मुख से विस्मयजनक वाक्य निकल गया।
‘‘क्यों?’’ किसलिए विवाह नहीं हो सका?’’ उसने पूछा।
‘‘बाईड-ग्रूम लापता है और यह उनके साथ कोर्ट जाने के लिए उनकी प्रतीक्षा में बैठी है।’’
‘‘तो पता किया है प्रोफेसर साहब के क्वार्टर पर?’’
‘‘ये यहां से ग्यारह बजे कोर्ट को जाने वाले थे और जब प्रोफेसर साहब उस समय नहीं आये तो उनके क्वार्टर पर टेलीफोन किया गया। वहां टेलीफ़ोन की घण्टी बजती रही, परन्तु कोई बोला नहीं। तब यहां से एक पड़ौसी को वहां भेजा गया। वह समाचार लाया है कि उनके निवास स्थान को ताला लगा है। आज रविवार है। विश्वविद्यालय का कार्यालय बन्द है। इससे पता नहीं चल सका कि उनकी वहां भी किसी प्रकार की सूचना है अथवा नहीं।’’
यशोदा भौंचक्क मुख देखती रह गयी। इस पर तेज़ ने पूछ लिया, ‘‘पुलिस में रिपोर्ट लिखायी है अथवा नहीं?’’
‘‘हम यही विचार कर रही थीं। यह साथ वाले प्रोफेसर ओ० नील कह रहे थे कि यत्न करना चाहिए कि बिना पुलिस की सहायता के ढूंढ़ा जाये। उनका विचार है कि वह स्वयं कहीं छुपकर बैठे हैं। विवाह से बचने के लिए ही वह यह कर रहे हैं और लज्जा के मारे प्रत्यक्ष में नहीं आ रहे।’’
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