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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595
आईएसबीएन :9781613010143

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


तेज ने पुनः पूछा, ‘‘रजिस्ट्रार साहब के घर पर तो टेलीफ़ोन होगा। वहां से पता करना चाहिए।’’

इस पर समीप बैठी दूसरी स्त्री उठी और उसने विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार के घर पर टेलीफ़ोन किया। रजिस्ट्रार बोला। रजिस्ट्रार की बात सुन टेलीफोन करने वाली स्त्री ने कह दिया, ‘‘प्रोफ़ेसर साइमन लापता हैं। वह विवाह रजिस्टर्ड कराने कोर्ट में नहीं गये।’’

इस पर राजिस्ट्रार ने पुनः कुछ कहा और इधर सुनन वाले ने चोंगा रख दिया और समीप आकर कहा, ‘‘रजिस्ट्रार कह रहे हैं कि वह रात ‘बैडिंग डिन्नर’ में सम्मिलित होने के लिए समय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। जब मैंने उनको इधर का वृत्तान्त बताया तो वह बताने लगे कि पहले उनको विवाह के उपलक्ष्य में पन्द्रह दिन का विश्वविद्यालय से अवकाश दिया गया था। परन्तु कल उन्होंने एक ताजी याचिका उपस्थित की थी। उन्होंने उसमें लिखा था कि वे अमेरिका से ऐशियाटिक देशों में भी जा रहे हैं, इस कारण उनका अवकाश दो मास का कर दिया जाये। मैंने सिफ़ारिश कर याचिका कौंसिल के पास भेज दी है।’’

‘‘मैं तो यही समझ रही हूं,’’ अब मैत्रयी ने किसी प्रकार का उद्गार प्रकट किये बिना कह दिया, ‘‘कि वह मुझसे छुपे हुए हैं।’’

‘‘इस पर भी,’’ तेजकृष्ण ने कह दिया, ‘‘पुलिस में रिपोर्ट कर देनी चाहिए। यदि मैत्रेयी जी चाहें तो मैं स्वयं पुलिस स्टेशन पर जाकर रिपोर्ट लिखा आऊं।’’

यशोदा ने कह दिया ‘‘हां! भाग कर जाओ और रिपोर्ट लिखाकर यहां आ जाना। मैं अभी यहां ही रहूंगी।’’

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