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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595
आईएसबीएन :9781613010143

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


‘‘हमारे साथ लन्दन क्यों नहीं चली चलतीं? विश्वविद्यालय से अपने अवकाश के दिन वहां क्यों नहीं चल कर व्यतीत करतीं?’’

‘‘चित्त नहीं करता। अब आपके लड़के आ गये हैं और वह मेरे वहाँ जाने को पसन्द भी नहीं करेंगे। साथ ही उनकी पत्नी नज़ीर की भी तो बात है।’’

‘‘नज़ीर तो लन्दन आयी नहीं। तेज़ अपने काम में इतना व्यस्त है कि उसे तुम्हारी ओर देखने का भी अवकाश नहीं मिलेगा। मैं समझती हूं कि वर्तमान स्थिति में तुम्हारा हमारे यहां चल कर रहना अधिक ठीक होगा।’’

मैत्रेयी विचार कर रही थी कि नज़ीर तेजकृष्ण के साथ क्यों नहीं आयी? साथ ही तेजकृष्ण इसका अभिप्राय क्या समझेगा?

वह प्रोफ़ेसर साहब के लापता होने पर दुःखी नहीं थी। इस पर भी वह यशोदा के घर पर जाने में संकोच अनुभव करती थी। यशोदा उसके संकोच को अनुभव कर रही थी। इस कारण उसे आश्वस्त करने के लिए बोली, ‘‘उस सायंकाल जब तेज नज़ीर के साथ चला गया था तो मैंने तुम्हें एक आश्वासन दिया था। मैंने तुम्हें कहा था कि तुम सदा मेरे लिए लड़की समान प्रिय रहोगी और तुम्हारी वर्तमान परिस्थिति में तुम्हारा अपनी मां के घर चलना ही ठीक होगा।’’

‘‘माता जी! मुझे तनिक विचार करने दें। अभी तो आप यहां हैं ही। कहां ठहरी हुई है?’’

‘‘होटल मैट्रोपोलिटन में?’’

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