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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘अब रात तो यहां रहेंगी ही?’’
‘‘हां! हमने कल प्रातःकाल के हवाई जहाज से अपने लिए सीट रिज़र्व करायी हुई है।’’
‘‘मैं रात तक विचार करने का समय चाहती हूं।’’
‘‘ठीक है! यदि तुम लन्दन नहीं चलोगी तो मैं कुछ दिन के लिए यहां ऑक्सफोर्ड में रह जाऊंगी। मैं समझती हूं कि इस समय तुम्हारे पास तुम्हारी मां का रहना ठीक ही है।’’
तेजकृष्ण ने पुलिस स्टेशन से लौटकर बताया, ‘‘मेरे साथ पुलिस इन्स्पेक्टर मैत्रेयी के बयान लेने आया है। कहो तो भीतर बुला लूँ?’’
‘‘हां! यह काम भी हो जाना चाहिए!’’ मैत्रेयी ने कहा।
पुलिस इन्स्पेक्टर भीतर आया और मैत्रेयी के बयान लेने लगा। मैत्रेयी ने वह सब कुछ लिखा दिया जो उसने अभी यशोदा को बताया था। पुलिस इन्स्पेक्टर ने लिख कर अपनी डायरी अपने ब्रीफ केस में रखी और विदा होने के लिए खड़ा होकर बोला, ‘‘मिस सारस्वत! यदि किसी प्रकार की सूचना हुई तो मैं फिर मिलनें आऊंगा।’’
इतना वह कह हाथ मिला चल दिया। पुलिस इन्स्पेक्टर गया तो मैत्रेयी ने अब स्वयं ही पूछा, ‘‘माता जी! आप कहां जा रही हैं?’’
‘‘मैं होटल को जा रही हूं।’’
‘‘मैं भी आपके साथ चलूं? अब लोग मिलने वाले आयेंगे तो मुझे अपनी कहानी बार-बार कहने में संकोच होता है।’’
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