लोगों की राय

उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595
आईएसबीएन :9781613010143

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

203 पाठक हैं

जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


‘‘कुछ ऐसा प्रतीत होता है कि पत्र के अतिरिक्त भी उसमें कुछ है। आप बताइए कि वह मैं अपने पास रखूँ अथवा लन्दन भेज दूं?’’

‘‘यहां भेज दीजिए।’’

तीसरे दिन साइमन का रजिस्टर्ड पत्र उसे मिल गया। उसने पत्र खोला तो उसमें तीस हज़ार पौण्ड का एक ड्राफ्ट था और साथ मानचैस्टर की एक क्लाथ मिल्स के बीस शेयर थे। सब मिलाकर पचास हज़ार पौण्ड कीमत के काग़ज़ात थे। सब वहां के किसी ऐटोर्नी के सामने मैत्रेयी सारस्वत के नाम ट्रान्सफ़र किये हुए थे।

उनके साथ एक पत्र में लिखा था, ‘‘मैं एक सप्ताह भर मिस्टर के० एम० बागड़िया की बातों पर विचार करता रहा हूं। कल रात मैं इस परिणाम पर पहुंचा था कि मैं तुमसे विवाह न करूं। इस कारण मैं ऑक्सफोर्ड से चला आया था। मुझे रात स्वप्न आया था कि मैं विवाह के उपरान्त ‘कन्ज़्यूगेशन ऑफ़ मैरिज़’ (विवाह का उपभोग) करने में असमर्थ हूं। इस बात ने मेरे मन में चल रही द्विविधा को निर्णायक रूप दे दिया।

‘‘मैंने मन में तुम्हें अपनी पत्नी माना था, परन्तु शरीर से अपने को अशक्त पा भाग आया हूं। विवाह के प्रतिकार में मैंने यह कुछ भेट देने का विचार किया था। वह दे रहा हूं।’’

‘‘यह तुम स्वीकार करोगी तो मैं सुख और शान्ति अनुभव करूंगा और यदि तुम कहीं विवाह कर बच्चों की मां बन सकोगी तो मैं तुम्हें मिलने आऊंगा और अपना वास्तविक ‘रोल’, एक गुरु का शिष्या के प्रति, प्रकट कर सकूंगा। जीयो और सुखी रहो।’’

मैत्रेयी समझ नहीं सकी कि क्या करे? उस समय यशोदा उसके कमरे में आई और उसके सामने वे ‘मनी-पेपर’ पड़े देख विस्मय में पूछने लगी, ‘‘ये सब क्या हैं?’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book