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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
मैत्रेयी ने सामने रखा साइमन का पत्र दिखा दिया। यशोदा ने पत्र पढ़ा और कहा, ‘‘तो रखो! मैं समझती हूं कि प्रोफ़ेसर एक भला व्यक्ति था और उसने तुम्हें विवाह करने की स्वीकृति दे दी है।’’
मैत्रेयी ने कागज़ बटोरते हुए कहा, ‘मैं समझती हूं कि इस सब की मैं अधिकारिणी नहीं हूं।’’
‘‘इनको रखो! रात पिताजी से सम्मति करना।’’
‘‘माताजी! कल रात आपके सुपुत्र ने फिर कुछ वैसे ही संकेत हैं किये जो उन्होंने दिल्ली में आपकी कोठी में रहते हुए किये थे।’’
‘‘क्या मतलब?’’
‘‘मतलब स्पष्ट है। यद्यपि स्पष्ट शब्दों में तो नहीं कहा, परन्तु मुझे यह समझ में आया है कि वह मुझे पुनः ‘प्रोपोज़’ करने लगे हैं।’’
‘‘ठीक है! करने दो। वह कुछ अनजान बच्चों की सी बातें करता है। एक खिलौना टूट गया तो अब दूसरे के लिए रोने लगा है।’’
‘‘देखो मैत्रेयी! नज़ीर की मां का टेलीफ़ोन आया था कि नज़ीर ने समाचार-पत्र में यह पढ़ा था कि तेजकृष्ण चीनियों की गोलियों से मारा गया है और उसने अपने को विधवा समझ किसी अन्य से विवाह कर लिया है। अब उसका पत्र आया है कि वह अपने पति के साथ इंग्लैंड आ रही है। तेज के साथ तो उसका विधिवत् विवाह नहीं हुआ था। इस कारण उसका नया विवाह कानून से वर्जित नहीं।’’
‘‘माताजी! मैं तो यह कह रही हूं कि मेरे शान्त जीवन में यह पुनः हलचल मचाने वाला होगा।’’
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