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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
यशोदा मुस्कराई और उसने साथ के कमरे से तेज के पिता को बुला लिया और दोनों बच्चो के कथन को सुना दिया।
करोड़ीमल ने हंसते हुए कहा, ‘‘यह स्वाभाविक ही है। यदि ये कहें तो मैं कल ही लन्दन आर्य समाज से पुरोहित बुलाकर विवाह करा दूं?’’
तेज ने कहा, ‘हां पिताजी! यह करा दीजिए। नज़ीर यहां आने वाली है और तब वह कोई गड़बड़ मचा सकती है।’’
‘‘बहुत दुर्बलात्मा हो तुम।’’
‘‘इसीलिए तो दृढ़संकल्प मैत्रेयी का आश्रय ढूंढ़ रहा हूं।’’
समाप्त
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