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उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘देखिए अम्मी! इस दुनिया में बिना वजह कुछ नहीं होता। जब यह कि तो हमारी तकलीफों और खुशियों की भी वजह होती है और नतीजों को देख उसके होने में भी वजहों का इल्म हो जाता है।’’
‘‘अच्छा देखो बेटी! मैं बाताती हूँ। जब यह यासीन अभी डेढ़-दो साल की उम्र का था कि एक दिन इसके अब्बाजान शाम के वक्त घर पर आये। आते ही मेरे मुँह पर एक चपत लगा, लातों से मेरी मरम्मत करने लगे। मैं तो इसे तुफान बदतमीजी की वजह सोचती रही और वह मेरी पिटाई करते रहे।’’
‘‘आखिर मैं जमीन पर मुख-सिर टाँगों में छुपा बैठ गई। वह पीटते-पीटते थक गये तो मुझे छोड़कर सामने कुर्सी पर बैठ गये। उस वक्त तक मेरे सिर से खून बहने लगा था और कमर बेहद दर्द करने लगी थी। मुख भी थप्पड़ों से लाल हो रहा था।’’
‘‘मैंने पूछा, ‘‘क्या कसूर हुआ है मुझसे!
‘‘वह कहने लगे, ‘‘मैं चाहता हूँ कि तुम्हें तलाक दे दूँ।’’
‘‘तब से उन्होंने मुझे अपने से अलहदा कर रखा है। मकान के पिछवाड़े के कमरे में मुझे रहने की मन्जूरी मिल गई। साथ ही खाने-पीने का इन्तजाम कर दिया।’’
‘‘मैं समझ नहीं सकी कि इस सब के लिए मुझे पीटने की क्या जरूरत थी? हजरत का कहना था कि इसके बिना मैं न मानती।’’
‘‘मेरे कमरे में तुम्हारे अब्बाजान नगीना की माँ सालिहा को ले आये। खुदा उसका भला करे। उसने मेरे लिए पलंग, फर्नीचर वगैरह उस कमरे में लगवा दिया। मैं तब से एक बेवा की-सी जिन्दगी बसर कर रही हूँ।’’
‘‘अब बताओ! यह मेरे किन अमालों का नतीजा हो सकता है?’
‘‘अम्मी! यह तो सरल-सी बात है। जरूर आपने इस जिन्दगी में या किसी पहले की जिन्दगी में किसी बच्चे को बेकसूर पीटा होगा जिसका नतीजा आपको पीटना हुआ।’’
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