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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596
आईएसबीएन :9781613011027

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...

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कमला ने कमरे में प्रवेश करते हुए कहा, ‘‘मगर पुलिस तो आ रही है।’’

अब अब्दुल हमीद को डर लगने लगा। उसके जी में आया कि वहाँ से भाग जाये। मगर कमला खाने के कमरे के द्वार पर खड़ी थी। बेयरा भी गोलियों की आवाज सुन वहाँ आ खड़ा हुआ था। उसने देखा था कि उसके मालिक ने अपने वालिद से पिस्तौल छीन ली है।

ज्ञानस्वरूप के मन में पिता को बचाने का विचार आया, मगर वह निश्चय नहीं कर सका कि उसको क्या करना चाहिए। वह प्रश्न-भरी दृष्टि में प्रज्ञा की ओर देखने लगा तो प्रज्ञा ने कह दिया, ‘‘जब पुलिस आ रही है तो आने दीजिए। शेष बात पुलिस के सामने ही हो सकती है।’’

‘‘अब्बाजान! आपने बहुत बड़ी गलती की है जो पिस्तौल निकाल लिया था और फिर गोली चलाकर धमकाया था।’’

सब इस घटना पर चिन्तित थे। सरस्वती ने ज्ञानस्वरूप से पूछा, ‘‘अब क्या होगा?’’

‘‘अम्मी! तुम क्या चाहती हो?’’

‘‘ये तुम्हारे अब्बा हैं।’’

‘‘ठीक है अम्मी! समझ गया हूँ। कोशिश करूँगा।’’

इतना कह वह पिता को कहने लगा, ‘‘अब्बाजान! कुछ जेब में है अथवा नहीं! पुसित तो पुलिस ही है। जैसे वहाँ तस्करी का माल छोड़ जान बचाया करते थे, वैसे ही यहाँ भी हो सकेगा।’’

अब्दुल हमीद के माथे पर पसीने की बूँदें दिखाई देने लगी थीं। उसने अपने मन की बात कर दी, ‘‘यह मेरी वाकफियत नहीं है?’’

‘‘मैं वाकफियत करा दूँगा।’’

अब अब्दुल हमीद कुर्सी पर बैठ सामने गिलास में रखा पानी पीने लगा।

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