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उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘जिससे अब्बाजान जबर्दस्ती न कर सकें। मैं यहाँ से जाना नहीं चाहती।’’
‘‘तुम्हें यहाँ मुहम्मद यासीन से शादी के लिए भेजा था। वह कहता है कि उसने तुम्हें बहन बना लिया है। इसलिए तुम्हें बम्बई ले जाना चाहता हूँ।’’
‘‘मगर मैं जाना नहीं चाहती।’
‘‘और तुम इनकार कैसे कर सकती हो?’’
‘‘यह तो अदालत फैसला करेगी। आपको इस मुल्क के कानून का ज्ञान नहीं है क्या?’’
‘‘मगर तुम यह भी जानती हो अथवा नहीं?’’ इतना कहते-कहते अब्दुल हमीद ने अपनी जेब से रिवाल्वर निकाला और एक फायर छत की तरफ कर दिया।
कमला इस बात की आशा ही कर रही थी। उसे मालूम था कि अब्बाजान अपना रिवाल्वर कहाँ रखा करते हैं। इस कारण उनका हाथ जेब की तरफ जाते ही वह मेज के नीचे हो गई थी और गोली छत की तरफ चली देख वह कमरे से बाहर भाग गई।
अब्दुल हमीद उसके पीछे भागने के लिए उठा, मगर ज्ञानस्वरूप ने अपने बाँहों में दबोच लिया और उसे दबाये रखने की कोशिश करने लगा।
अब्दुल हमीद कह रहा था, ‘‘तुम सब यहाँ काफिर हो गये हो। और मैं अपने खून-पसीने से पैदा किये रुपये से काफिरों की परवरिश करना नहीं चाहता।’’
इस वक्त भी ज्ञानस्वरूप ने पिता को बाँहों में दबोचा हुआ था और वह छूटने के लिए छटपटा रहा था। दूसरे सब खाना छोड़ उठ खड़े हुए थे।
सालिहा खाविन्द को छुड़ाने के लिए ज्ञानस्वरूप पर वार करने लगी तो सरस्वती ने उसकी बाँह पकड़ ली। उन दोनों में हाथापाई होने लगी। प्रज्ञा अपनी सास की सहायता पर जा पहुँची और सालिहा को रोकने में सफल हो गई।
ज्ञानस्वरूप ने अब्बाजान के हाथ से रिवाल्वर छीन लिया। इस हाथापाई में एक गोली और चली। वह सामने रखी बिरियानी की डिश को लगी और वह चूर-चूर हो गई। वह चीनी की बनी थी। पिस्तौल छिन जाने पर अब्दुल हमीद बोला, ‘यासीन! अब उसे कह दो, पुलिस बुलाने की जरूरत नहीं है।’’
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