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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596
आईएसबीएन :9781613011027

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


‘‘हम यह कर सकते हैं कि जब वह पहले वेतन का दुरुपयोग कर यहाँ आए तो उसे नौकरी से निकाल दें। परन्तु पहले किए काम की उजरत तो उससे छीन नहीं सकते।’’

कमला को अभी भी सन्तोष नहीं हुआ। उसने कहा, ‘‘मगर सरकार यही तो कर रही है?’’

‘‘क्या कर रही है?’’

‘‘जब सरकार कहती है कि धनी लोग अपने धन से गरीबों की उन्नति का मार्ग रोक रहे हैं और वह उनके कामों को ‘नैशनलाईज़’ कर रही है तो दिये वेतन को वापस लेन ही तो है।’’

प्रज्ञा मुस्करा रही थी। वह समझ रही थी कि कमला की बुद्धि का विकास हो रहा है जो वह एक घटना से दूसरी का नाप-तोल कर रही है। सरस्वती को यह तो पता था कि सरकार जब किसी कारण जनता पर टैक्स लगाती है तो एक प्रकार से उसकी कमाई को ही छीनती है। इस कारण वह चुप कर गयी। परन्तु प्रज्ञा ने दोनों में अन्तर बता दिया।

उसने कहा, ‘‘देखो कमला! यह इस प्रकार नहीं, जैसा तुम समझती हो। ऐसा वे सरकारें करती हैं जो परमात्मा को नहीं मानतीं। ये सरकारें पुरस्कार भी अपनी इच्छा पर देती हैं और किसी व्यक्ति से छीनती भी अपनी मर्जी से हैं।

‘‘जब कोई सरकार यह नहीं जान सकती कि क्यों एक व्यक्ति अनायास ही धनवान हो रहा है तो वह समझती है कि उस व्यक्ति ने कहीं चोरी की है अथवा डाका डाला है। ये अधिकारी नहीं जानते कि इस जन्म में कभी-कभी पूर्वजन्म के कर्मफल भी शामिल हो फल देने लगते हैं। वे सरकारी कर्मचारी जब किसी को किंचित्मात्र प्रयत्न से अपार फल प्राप्त करता देखते हैं तो यह समझते हैं कि उसने डाका डाला है अथवा कहीं धोखा-धड़ी की है।’’

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