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उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
अब फिर सरस्वती के मन में संशय उत्पनन हो गया। उसने पूछ लिया, ‘‘यह भी तो होता ही है कि लोग चोरी करते हैं, डाका भी डालते हैं। फिर कैसे भेद-भाव किया जाए कि यह धन पूर्वजन्म के फल से मिला है और इस जन्म में चोरी, डाका डालने से नहीं मिला।
‘‘ज्ञान के अब्बाजान की बात देख लो। यह यकीनन कहा जा सकता है कि यह चोरी करते हैं। अब तुम यह भी कह सकती हो कि यह पूर्वजन्म के फल से धनी हुए हैं और इनका धन चोरी का है, इसमें कुछ शक नहीं।’’
‘‘अम्मी! आप कहती तो ठीक हैं, परन्तु चोरी करते समय वह पकड़े नहीं जाते तो इस कारण नहीं कि उनके कर्मों में बचना लिखा है, बल्कि इसमें कारण यह है कि वर्तमान राज्य-प्रणाली में दोष है।’’
‘‘वही रमजान के वेतन और शराब पीने का उदाहरण लिया जा सकता है।’’
‘‘रमजान को वेतन तो उसकी महीना-भर की मेहनत पर मिला है। मगर धन से यदि वह बलात्कार करता है, तो कानून के खिलाफ करता है। इस कारण वह उस वेतन से जो उसे महीना-भर मेहनत करने से मिला है, बलात्कार कर कानून भंग ही करता है।’’
‘‘यह दोष उस वेतन का नहीं जो उसको हमने दिया है। वरन् यह सरकार का दोष है जो उसे बलात्कार करने से रोक नहीं सकी। इस बलात्कार में रमजान दोषी तो है ही। उसे उसका फल मिलना ही चाहिये, परन्तु यह फल उसका वेतन छीन लेने से सम्बन्ध नहीं रखता। न ही हम वेतन देने वाले अपराधी हैं।’’
‘‘तो फिर होना क्या चाहिए?’’
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