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उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘मगर आज जाने की आवश्यकता नहीं है। मैं समझता हूँ दो-तीन दिन ठहरकर मिठाई लेकर जाना।’’
‘‘मिठाई तो मैंने उसे दे दी है।’’ महादेवी ने कह दिया, ‘‘मिठाई के लिए जाने की आवश्यकता नहीं।’’
‘‘पर पिताजी! मैं तो उससे क्षमा माँगने जाना चाहता हूँ।’’
‘‘पर उसका अपमान किसने किया है?’’
‘‘पिताजी! जिसने बुलाया था, वह समझता है कि उसको इस प्रकार भगाना अपमान ही था। इस कारण क्षमा माँगने मैं ही जाऊँगा।’’
‘‘यह कुछ नहीं। मैं जानता हूँ कि तुम क्यों जाना चाहते हो वहाँ। वही तो मेरी नाराजगी का कारण है। वह चहकने वाली बुलबुल ही तो थी जिसके कारण मैं नाराज हुआ था और अब भी हूँ। मैं उसे इस घर में नहीं आने दूँगा।’’
‘‘परन्तु पिताजी! बुलबुल तो चहकती ही है। यही तो उसका गुण होता है। इस गुण के कारण उससे नाराज होने की आवश्यकता नहीं।’’
‘‘मगर वह मुसलमान है?’’
‘‘वह क्या होता है?’’
‘‘मुहम्मद गौरी के खानदान के लोग।’’
‘‘जहाँ तक मुझे मालूम है उसका दूर-दराज का भी सम्बन्ध मुहम्मद गौरी से नहीं है। गौरी एक पठान कबीले का घटक था और यह बम्बई के खोजा की लड़की है जो पहले हिन्दू थे और पीछे कुछ-एक कारणों से मुसलमान हो गए थे।’’
‘‘वह और दुनिया-भर के मुसलमान, गैर मुसलमानों से नफरत करते हैं। इसीलिए मैं उनसे नफरत करता हूं।’’
‘‘मगर पिताजी! वह तो मुझसे मुहब्बत करती है। जिससे मुहब्बत की जाती है, भला उससे नफरत कैसे हो सकती है?’’
‘‘मुहब्बत तुम्हें मुसलमान बनाने के लिए की जा रही है।’’
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