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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596
आईएसबीएन :9781613011027

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


‘‘मुझे कैसे मुसलमान बना लेंगे? मैं तो एक हिन्दू माँ के पेट से पैदा हुआ हूँ। माताजी से पूछ लीजिये कि मैं हिन्दू हूँ या मुसलमान हूँ।’’

इस समय सेवक चार प्याले ट्रे में कॉफी के रखकर ले आया।

‘‘कुछ भी हो,’’ रविशंकर ने कॉफी पीते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हें उससे विवाह करने की स्वीकृति नहीं दे सकता।’’

‘‘मगर मैं आपकी स्वीकृति लेने के लिए विवश हूँ क्या?’’

‘‘कानून से तो नहीं, मगर मेरी तुमसे मुहब्बत का भी तो दावा है।’’

‘‘तो क्या प्रज्ञा के साथ आपकी नफरत थी जब उसने विवाह करने का फैसला किया था?’’ महादेवी ने पूछ लिया।

इसका उत्तर रविशंकर विचार करने लगा। उसने विचार कर एक बात कह दी, ‘‘प्रज्ञा ने तो अपने विवाह के इन्तजाम की भी बात हमें, मेरा मतलब है मुझे और तुम्हें बताई नहीं थी। इससे यह पता चलता है कि उसमें और उमा में फरक है। उमा ने तो तुम से पूछ लिया है कि वह क्या करे?’’

‘‘यह बात नहीं पिताजी!’’ उमाशंकर ने अपने मन की बात बता दी, ‘‘प्रज्ञा ने नहीं बताया तो इसमें कारण उसका अपना हो सकता है। वह हमने उससे कभी भी पूछा नहीं और उसने बताया नहीं। क्यों माताजी! उससे कभी पूछा है कि उसने विवाह चोरी-चोरी क्यों किया है?’’

‘‘नहीं, मैंने कभी पूछा नहीं। इस पर भी मैंने अपने मन में विचार किया है कि मेरे पूछने पर यदि वह यह कहती कि हम उसके इस सम्बन्ध को अकारण पसन्द नहीं करते तो हम क्या कहते? मुझे उसका यह विवाह पसन्द नहीं, परन्तु इसमें कारण समझ नहीं आया।’’

‘‘तो तुम्हें वह विवाद पसन्द नहीं न?’’ रविशंकर ने पत्नी से पूछ लिया।

‘‘जी! पसन्द तो नहीं। मगर क्यों, यह मैं जानती नहीं और अगर वह कहती कि इसी कारण उसने बताया नहीं तो मैं झूठ बोलती नहीं और कारण बता न सकती। इसलिए मैंने पूछा ही नहीं।’’

‘‘तो यह दोष उसमें नहीं, तुम में है, जो तुम कुछ कह रही हो और उसका कारण नहीं जानती।’’

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