उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
लक्ष्मी ने सुभद्रा के
माथे पर हाथ रखकर देखा। उसका माथा तप रहा था। चिन्ता प्रकट करते हुए उसने
कहा, ‘‘किस डॉक्टर को दिखाया है?’’
इसके पिता होमियोपौथिक
दवा रखते हैं। वही दे रहे हैं।’’
‘‘यह तो ठीक नहीं। किसी
समझदार डॉक्टर को दिखाना चाहिए।’’
‘‘मैं कह दूँगी कि बहिनजी
किसी समझदार डॉक्टर से इसकी चिकित्सा कराने के लिए कह गई हैं।’’
‘‘हाँ, मैं कल आऊँगी। कहो
तो डॉक्टर को साथ लेती आऊँ?’’
‘‘यह भी कह दूँगी।’’
तुम स्वयं कुछ क्यों नहीं
कहती? क्या यह तुम्हारी लड़की नहीं है?’’
‘‘है तो। आपकी भी तो
लड़की है। परन्तु इस घर में चलती सुमित्रा के पिता की ही है।’’
लक्ष्मी ने फिर कुछ नहीं
कहा।
अगले
दिन वह स्वयं ही डॉक्टर को लेकर आ गई। स्कूल प्रातःकाल के थे। चरणदास
स्कूल की ड्यूटी देकर तब तक घर पहुँच गया था। सुमित्रा भी आ चुकी थी।
पिछले
दिन घर पहुँचकर लक्ष्मी ने अपने पति को चरणदास की छोटी लड़की की अस्वस्थता
तथा चिकित्सा की व्यवस्था की बात बता दी थी। कस्तूरीलाल ने अपनी माँ का
समर्थन करते हुए कहा, ‘‘हाँ, पिताजी! उसका शरीर तो इस प्रकार तप रहा था,
मानो खौलता हुआ पानी हो।’’
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