उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
|
10 पाठकों को प्रिय 377 पाठक हैं |
दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
माँ ने संकेत किया तो वह
आम के छार के साथ मठरी खाने लगा। मोहिनी ने ननद से पूछा, ‘‘बहिनजी! आपके
लिए भी लाऊँ?’’
‘‘नहीं, रहने दो भाभी!’’
इस
समय सुमित्रा आ गई और मोहिनी ने उसके साथ कस्तूरी का परिचय करा दिया।
सुमित्रा अभी उसको अर्ध-प्रकाश में देख ही रही थी कि बिजली आ गई और एकाएक
कमरे में प्रकाश हो गया।
मोहिनी ने कमरा बहुत
साफ-सुथरा कर रखा था। दीवारों पर सफेदी और किवाड़ों पर वार्निश से कुछ तो
सुघड़ों का घर प्रतीत होता था।
प्रकाश
होने पर कस्तूरीलाल ने अपनी माँ की दूसरी ओर बैठी सुमित्रा को भली प्रकार
देखा। उसको कुछ ऐसा भास हुआ कि इस साधारण वातावरण में वही एक चाँद-सी
उज्जवल लड़की है।
मोहिनी ने कस्तूरी को
ध्यान से सुमित्रा की ओर
देखते हुए पाया तो बोली, ‘‘यह तुम्हारी बहिन सुमित्रा है। देख लो, इसके
विवाह में तुम्हें भी कुछ देना ही पड़ेगा।’’
इस समय लक्ष्मी ने अपने
थैले में से मिठाई की एक छोटी-सी टोकरी निकाली और मोहिनी के सम्मुख रखते
हुए बोली, ‘‘छोटी कहाँ है आज?’’
‘‘उसको आज कुछ ज्वर-सा हो
गया है, ऊपर लेटी हुई है।’’
‘‘अच्छा, तब तो चलो, ऊपर
ही चलें।’’
सभी
ऊपर चले गए। सीढ़ियाँ बहुत तंग थीं, परन्तु मोहिनी ने उनको बहुत साफ कर
रखा था और दीवारों पर वार्निश की हुई थी। सीढ़ियों में भी अँधेरा था,
किन्तु बिजली लगा होने के कारण जाने में किसी प्रकार की असुविधा नहीं हुई।
|