उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
‘‘जब
आप देते थे तो इन्कार किस प्रकार कर सकती थी? खैर तीन दिन तक तो दर्द चलता
रहा। साथ ही बुखार होने लगा। एक रात तो डिलीरियम भी हो गया था। फिर डॉक्टर
आया और उसने एक इन्जैक्शन दिया। बच्चा हुआ तो हालत में सकून आया। परसों
बुखार उतरा है। कल से चिकन सूप दिया जाने लगा है। तब जान-में-जान आई है।’’
‘‘परमात्मा का धन्यवाद
करना चाहिए कि जान बच गई।’’
‘‘पर डॉक्टर, नर्स और
दवाइयों का बिल तो एक हज़ार रुपये बन गया है।’’
‘‘वह तो तुमने दे दिया है
न?’’
‘‘मेरे पास कहाँ से इतना
रुपया आया जो मैं दे देती?’’
‘‘तो कोई और दे गया होगा।
मुझे तो डॉक्टर ने बताया है कि सब कुछ मिल चुका है।’’
‘‘तो आप ही ने डॉक्टर को
सब दे दिया होगा।’’
‘‘क्या मैं बच्चे को देख
सकता हूँ?’’
शरीफन ने संकेत से नर्स
को बुलाया और वह गोलमटोल बच्चे को लेकर आ गई। गजराज ने बच्चे को गोद में
लेकर कहा, ‘‘बहुत प्यारा लगता है।’’
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