उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
जब वह चरणदास
इत्यादि को गाड़ी में चढ़ाने के लिए दिल्ली स्टेशन पर गया तो उसके मन में
एक दूसरी ही योजना बन रही थी। वह यह विचार कर रहा था कि अब
बयालीस-तैंतालीस वर्ष का है। उसके जवानी के दिन कम रह गए हैं। जितने दिन
भोग-विलास की सामर्थ्य है, उतने दिन तो काम चलाये। वह यह जानता था कि
शरीफन से अधिक सुन्दर और सलीके वाली औरत मिल सकना अति कठिन है।
इस
कारण चरणदास के दिल्ली से जाने के कुछ ही घण्टों के बाद वह शरीफन के मकान
पर जा पहुँचा। दाई बच्चे को दूध पिला रही थी और शरीफन पलंग पर सो रही थी।
गजराज
को आधे घण्टे तक प्रतीक्षा करनी पड़ी। शरीफन जागी तो वह कुरसी ले उसके
पलंग के समीप बैठ गया। शरीफन ने गजराज की ओर देख मुस्कराते हुए पूछ लिया,
‘‘तो आपको फुरसत मिल गई है?’’
‘‘हाँ।’’
‘‘मैं तो मर ही चली थी।
आप यों गायब हुए कि फिर एक महीने तक दीदार ही नहीं हुए।’’
‘‘बहुत
काम में मसरूफ था। फिर तुम मेरा पता और फोन नम्बर तो जानती ही हो। किसी को
कहकर खबर भिजवा देतीं तो बात न बन जाती। मैं चला आता। क्या हुआ था?’’
‘‘बच्चा कुछ अधिक पल गया
था। लेडी डॉक्टर का कहना है कि हमल के दिनों में बहुत बढ़िया खुराक लेती
रही हूँ।’’
‘‘न खातीं इतना कुछ।’’
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