उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
दिन-पर-दिन
व्यतीत होने लगे और गजराज निश्चय नहीं कर सका कि वह चरणदास की कौन सी भूल
को निशाना बनाकर, उसे कम्पनी से बाहर कर दे। वह नित्य कार्यालय में जाकर
फाइलों का निरीक्षण करता रहता था। उसका यत्न यह था कि कोई ऐसी भूल पकड़
ले, जिससे वह उसके साथ झगड़ा कर सके।
चरणदास का अवकाश-काल
समाप्त
होने वाला था। उसका पत्र आया था कि वह आगामी शनिवार तक दिल्ली पहुँच रहा
है। अभी तक भी गजराज को उसके काम में कोई दोष दिखाई नहीं दिया था।
चरणदास
सायंकाल फ्रण्टियर मेल से आने वाला था और दोपहर तक उसके काम की गजराज
जाँच-पड़ताल करता रहा था। अभी तक भी उसमें कोई छिद्र नहीं दिखाई दिया।
लगभग तीन बजे
मध्याह्नोत्तर, उत्तर प्रदेश का एजेंट अपने क्षेत्र का विवरण देने के लिए
कार्यालय में आया। गजराज उसको जानता था।
उसने बताया, ‘‘मैं पिछले
छः मास के कार्य का ब्यौरा देने के लिए आया हूँ।’’
‘‘सेक्रेटरी साहब आपको कल
मिलेंगे।’’
‘‘मैं
तो आज रात को वापस जाना चाहता था। मैं सारी रिपोर्ट यहाँ रख जाता हूँ। यदि
कोई बात समझ में न आए तो वे मुझसे लिखकर पूछ सकते हैं। कल सायंकाल मेरी
लड़की की सगाई है। यदि वे कहेंगे तो मैं पुनः आ जाऊँगा।’’
‘‘अच्छा देखें, आप कितने
कार्य का विवरण लाये हैं?’’
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