उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
चीफ
एजेण्ट अपनी फाइल खोलकर बताने लगा, ‘‘छः मास में प्रान्तभर में हमने डेढ़
करोड़ का काम किया है। अधिकांश पॉलिसियाँ पाँच हज़ार से कम की हैं। केवल
दस पॉलिसियाँ ऐसी हैं, जो बीस हज़ार तक की हैं। तीन पॉलिसियाँ बीस हज़ार
से पचास हज़ार तक की हैं। पॉलिसियाँ सब पहले भेजी जा चुकी हैं। उनसे
सम्बन्धित कागजात भी साथ ही भेजे जा चुके हैं।
‘‘खर्चा कार्यालय
का दशमलव पाँच प्रतिशत से कम है। छः मास का प्रीमियम दो लाख पचीस हज़ार
है। इस पर सबका कमीशन मिलाकर पचास हज़ार है। यह तो नये काम का ब्यौरा है।’’
गजराज इस काम से सन्तोष
अनुभव कर रहा था। उसने कहा, ‘‘अच्छी बात है। आपको सेक्रेटरी साहब
लिखेंगे।’’
‘‘एक
बात मैं विशेष रूप से याद दिलाने के लिए आया था। एक रायबरेली का केस है।
मिर्ज़ा फखरुद्दीन दस हज़ार के लिए इन्श्योर्ड था। वह इन्श्योरेंस धोखे
में हो गया था। जो आदमी दिखाया गया था और जिसका डॉक्टरी मुआयना किया गया
था, वह व्यक्ति वह नहीं था जिसका इन्श्योरेंस किया गया था। वह पुराना रोगी
था और बीमा होने के छः मास के बाद उसका देहान्त हो गया। वह पॉलिसी उसने
अपनी बीवी के नाम कर रखी थी। उसकी बीवी शरीफन से क्लेम का प्रार्थना-पत्र
दिया हुआ था। उस पर जाँच की गई तो सब भेद खुल गया। जिस डॉक्टर ने
इन्श्योर्ड का डाक्टरी परीक्षण किया था, उसने लिखा है जिसका मुआइना हुआ
था, वह अभी जीवित है। डेढ़ वर्ष से हैड ऑफिस में पड़ा है, उसका निर्णय हो
जाना चाहिए।
‘‘हमको शक है कि बीमा तो
ठीक हुआ है परन्तु क्लेम करने वाली कोई बोगस औरत है।’’
गजराज
की बुद्धि में बात समा गई। फिर भी वह अपने मन के सन्देह का, एजेण्ट के
सम्मुख प्रमाण ढूँढ़ना नहीं चाहता था। अतः उसने उसका केस नम्बर लिख दिया
और एजेण्ट को यह कहा, ‘‘इस विषय में फाइलें निकलवाऊँगा।’’ और उसको विदा कर
दिया।
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