उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
कस्तूरी
यह तो समझ रहा था कि वह नाराज़ है, परन्तु वह इतनी नाराज़ होगी कि उसके
बाप-दादाओं को भी गाली देने लगेगी, इसका उसे किंचित्-मात्र भी आभास नहीं
था। फिर भी वह गंभीर हो कहने लगा, ‘‘सुमित्रा, गाली देना तो कोई युक्ति
नहीं। न ही यह किसी बात को सिद्ध करता है। बताओ मैंने तुम्हारे साथ क्या
बेईमानी की है?’’
‘‘तुमने मुझे झूठी बातें
बताकर पतित किया है। तुम
मुझसे चार वर्ष बड़े थे। तुम्हें पता होना चाहिए कि वह सम्बन्ध विवाह के
बिना ठीक नहीं होता, फिर भी तुमने भ्रष्ट कर दिया है।’’
‘‘देखो,
सुमित्रा, विवाह तो मैं अब भी तुमसे करूँगा। मैं तुमसे प्रेम करता हूँ।
तुम न पतित हुई हो, न भ्रष्ट ही। मेरी दृष्टि में तुम वैसी ही पवित्र हो,
जैसी पहले थीं।
‘‘तुम यह जानते थे
तुम्हारा मुझसे विवाह नहीं हो
सकता, फिर भी तुमने यह पाप किया है। अपनी बहन के साथ सम्बन्ध बनाकर तुमने
महापातक कार्य किया है।’’
‘‘तुम मेरी बहन नहीं हो।
तुम्हारा और
हमारा गोत्र भी एक नहीं है। तुम्हारे माता-पिता मेरे माता-पिता नहीं है।
वे परस्पर सम्बन्धी मात्र हैं। कानून और धर्म के विचार से हम दोनों का
विवाह हो सकता है। यह तुम्हें किसने बताया कि नहीं हो सकता?’’
‘‘तुम्हारी
माताजी ने। तुम उनके पास जाओ और अपना तर्क उनके सम्मुख उपस्थित करो। जब
तुम्हारे बढ़े-बूढ़े इस विवाह के लिए राजी हो जाएँगे तो फिर मुझसे मिलना।
‘‘मैं जानती हूँ कि यह
विवाह नहीं हो सकेगा। इससे कहती हूँ कि पहले जाकर अपने और मेरे माता-पिता
से बात कर उनकी स्वीकृति ले लो।’’
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