उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
|
10 पाठकों को प्रिय 377 पाठक हैं |
दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
लक्ष्मी
कस्तूरी के मन में अपनी बहिन के प्रति इस सहानुभूति को देखकर प्रसन्न थी।
डॉक्टर आहूजा से फोन पर समय निश्चित किया गया तो उसने बताया कि वह बारह
बजे तक चल सकेगा। लक्ष्मी पौने बारह बजे अपनी मोटर लेकर घर से चलने लगी तो
कस्तूरी भी साथ चलने के लिए तैयार हो गया। माँ-पुत्र दोनों डॉक्टर को लेकर
चरणदास के घर जा पहुँचे।
डॉक्टर जब रोगी के कमरे
में पहुँचा तो
चरणदास वहाँ बैठा हुआ अपनी होमियोपैथी की पुस्तक में सुभद्रा के रोग के
लक्षण देखकर निदान कर रहा था। आज उसका ज्वर उतर गया था। लड़की सचेत थी,
किन्तु दुर्बल हो गई थी।
डॉक्टर को आया देख,
चरणदास ने पुस्तक एक ओर रखकर, हाथ जोड़ नमस्कार की और खड़े हो डॉक्टर के
लिए रोगी के सम्मुख कुर्सी सरका दी।
डॉक्टर
ने बैठकर रोगी को देखना आरम्भ किया। पन्द्रह मिनट की देखभाल के अनन्तर
उसने कहा, ‘‘ज्वर तो अब नहीं है। फिर भी फेफड़े में थोड़ी सूजन है, पेट
में कब्ज है। सम्भवतया ज्वर फिर हो जाए।’’
इसके बाद उसने अपने बैग
में से एक पैड निकाला और उस पर नुसखा लिखने लगा। उसने पूछा, ‘‘क्या नाम है
लड़की का?’’
‘‘सुभद्रा।’’
‘‘आयु ?’’
‘‘चार वर्ष।’’
|