उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
‘महोदय,
कुछ
मास से मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता। मैं इसको सुधारने के लिए अभी कुछ
दिन पूर्व ऊटी भी गया था, परन्तु कुछ विशेष लाभ नहीं हुआ। इस कारण मैं
स्वयं को कम्पनी के मन्त्रित्व का उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य निभाने में
असमर्थ पाता हूँ।
मुझे तुरन्त काम से मुक्त
कर दिया जाय और मुझसे चार्ज लेने के लिए किसी उपयुक्त व्यक्ति को नियुक्त
कर दिया जाय।
दिनांक
२-१२-३३
भवदीय
मन्त्री।’
यह पढ़ चरणदास विस्मय में
उसका मुख देखता रह गया। कुछ क्षण विचार करने के उपरांत चरणदास ने पूछा,
‘‘किसे चार्ज देना होगा?’’
‘‘कस्तूरीलाल को।’’
‘‘ओह समझा! तो जीजाजी
साले के स्थान पर लड़के को भरती करना चाहते हैं?’’
‘‘मैं
क्या चाहता हूँ और क्या नहीं चाहता, यह तुम्हारे सोचने का विषय नहीं है।
जब डायरेक्टर्स बोर्ड ने यह निर्णय किया कि तुमको कम्पनी के साथ गबन के
अभियोग में पुलिस के हवाले कर दिया जाय, तो मैंने यह सुझाव रखा था। यदि
तुम मेरा सुझाव मान जाओ तो मैं तुमको किसी अन्य काम पर लगाने का विचार
करूँगा। साथ ही वह सेक्रेटरी का कार्य किसी बाहरी व्यक्ति के हाथ में न
चला जाय, इसके लिए मैं यत्न कर रहा हूँ। उस यत्न में कस्तूरीलाल को तुमसे
चार्ज लेने के लिए नियुक्त करना मेरा प्रथम पग है।’’
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