उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
‘‘क्या मैं जान सकता हूँ
कि वह कौन-सी बात है, जिसके लिए मुझे पुलिस के हवाले करने का विचार किया
जा रहा था?’’
‘‘वैसे
बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की मीटिंग की कार्रवाई गुप्त रहती है। फिर भी मैं
तुमको प्राइवेट तौर पर बता देने में कोई हानि नहीं समझता।’’
इतना
कह गजराज ने बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की मीटिंग का एक अन्य प्रस्ताव चरणदास
के सम्मुख रख दिया। इसमें शरीफन को नाजायज़ दस हज़ार रुपये का चैक देने का
उल्लेख था और उचित कार्रवाई करने के लिए प्रबन्ध-संचालक को अधिकार देने की
बात थी। जब चरणदास ने वह प्रस्ताव पढ़ा तो उसका मुख विवर्ण हो गया। वह
विचार कर रहा था कि इस केस को हुए एक वर्ष से ऊपर हो गया है। यह किस
प्रकार पता चल गया? वह विस्मय में डूबा हुआ देख ही रहा था कि गजराज ने
इसकी व्याख्या कर दी। उसने कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश की चीफ एजेन्ट ने एक सूचना
सब डायरेक्टरों को भेजी थी कि अमुक केस की जाँच होनी चाहिए, क्योंकि यह
केस लगभग दो वर्ष से पैंडिंग पड़ा हुआ है। सम्भव है अधिक विलम्ब करने पर
प्रमाण गुम हो जाएँ।
‘‘इस सूचना से बोर्ड ने
इस विषय में जाँच की
तो रुपया दिया हुआ पाया गया। किन्तु जाँच करने पर पता चला कि शरीफन के पति
के स्थान किसी अन्य का डॉक्टरी परीक्षण कराकर पॉलिसी मंजूर करा ली गई थी।
‘‘तुमसे
गलती यह हुई है कि तुमने डॉक्टर और इन्स्पेक्टर के बयान फाइल में से गुम
कर दिये हैं, परन्तु तुमने उन लोगों को उस रिश्वत का भाग नहीं दिया जो
तुमको मिला है अथवा मिल रहा है।’’
इतना कह गजराज ने
मुस्कराते हुए
चरणदास की ओर देखा। चरणदास समझ गया कि केस इतना गलत है कि सब बात पता चल
गई तो वह चार-पाँच वर्ष के लिए कारावास के दण्ड का भागी बन जायगा। इस कारण
उसने और अधिक हील-हुज्जत किये बिना अपने त्याग-पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये।
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