उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
‘‘मतलब यह कि उनको कम्पनी
ने सेक्रेटरी के पद से पृथक कर दिया है और उसके स्थान पर मुझे लाया गया
है।’’
‘‘पृथक् क्यों कर दिया
है?’’
‘‘उन्होंने
बेईमानी की थी। कम्पनी का दस हज़ार रुपया हज़म किया था। यह तो पिता के
यत्न का परिणाम है कि उनको पुलिस के हवाले नहीं किया गया।’’
‘‘अब वे हैं कहाँ?’’
‘‘मैं नहीं जानता। सम्भव
है घर चले गये हों।’’
सुमित्रा लौटने लगी तो
कस्तूरीलाल ने कहा, ‘‘तनिक ठहरो तो सही।’’
वह घूमकर खड़ी हो गई।
कस्तूरीलाल ने अपनी बात बताते हुए कहा, ‘‘पिताजी ने मेरे विवाह का प्रबन्ध
किसी अन्य स्थान पर कर दिया है।’’
‘‘बस अथवा कुछ और भी?’’
‘‘सुना है लड़की बहुत
सुन्दर है, तुमसे भी अधिक।’’
‘‘बधाई।’’
इतना कह वह कमरे के द्वार
की ओर घूमी तो कस्तूरीलाल ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘परन्तु मैं तुमसे
प्रेम करता हूँ।’’
सुमित्रा ने झटके से अपना
हाथ छुड़ाया और कार्यालय से बाहर हो गई।
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