उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
|
10 पाठकों को प्रिय 377 पाठक हैं |
दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
कस्तूरीलाल
चुप रह गया। गजराज ने उसे चुप देख कहा, ‘‘मैंने तुम्हारे विवाह का प्रबन्ध
एक अन्य लड़की से कर दिया है। वह सुन्दर है, पढ़ी-लिखी है, सभ्य, सुशील और
समाज में प्रसिद्ध व्यक्ति की लड़की है।’’
‘‘परन्तु डैडी, मैं
सुमित्रा से प्रेम करता हूँ।’’
‘‘देख लो, एक ओर प्रेम
है, दूसरी और तीन-चार हज़ार रुपये मासिक की आय और साथ ही सुन्दर लड़की से
विवाह।’’
कस्तूरीलाल ने इस बात का
भी कोई उत्तर नहीं दिया। वह नहीं जानता था कि इस परिस्थिति में क्या करे।
कस्तूरीलाल
सेक्रेटरी के कमरे में गया तो गजराज ने यह आज्ञा सारे कार्यालय में घुमा
दी कि चरणदास के अस्वस्थ होने के कारण अपने पद से त्याग-पत्र देने पर
मिस्टर कस्तूरीलाल को सेक्रेटरी नियुक्त कर दिया गया है। इसके बाद गजराज
अपना काम देख घर लौट गया।
उस दिन सुमित्रा अपने
पिताजी के साथ
कार में घर जाने के लिए कार्यालय में आई तो अपने पिता के स्थान पर
कस्तूरीलाल को बैठे काम करते देख चकित रह गई। उसे द्वार पर खड़े हो
आश्चर्य करते देख कस्तूरीलाल मुस्कुराया और बोला, ‘‘आओ सुमित्रा, बैठो।’’
सुमित्रा ने कमरे में
प्रवेश किया, ‘‘परन्तु खड़े-खड़े ही पूछ लिया, ‘‘पिता-जी कहाँ हैं?’’
‘‘वे त्याग-पत्र दे गये
हैं।’’
‘‘क्या मतलब?’’
|