उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
रखैल की बात सुनकर तो
लक्ष्मी के मन में अपने भाई के प्रति
ग्लानि उत्पन्न हो गई। उससे उसकी नौकरी छूट जाने पर सहानुभूति का एक शब्द
भी कहना उचित नहीं समझा।
लक्ष्मी की अवहेलना
मोहिनी से छिपी नहीं
रह सकी। जब तीन दिन तक गजराज अथवा लक्ष्मी का कोई सन्देश नहीं आया और न ही
उन्होंने कोई सुख-समाचार पूछा, तो मोहिनी समझ गई कि परिवार के दोनों अंगों
में कोई विकट वैमनस्य उत्पन्न हो गया है।
रविवार का दिन था।
चरणदास प्रातःकाल अल्पाहार कर घर से चला गया था। सुमित्रा को कॉलेज जाना
नहीं था। वह सिर धोकर बरामदे में बैठी बाल सुखा रही थी। मोहिनी अपने कमरे
से कपड़े पहनकर निकली और सुमित्रा को कुरसी पर बैठी देख खड़ी हो गई।
सुमित्रा ने प्रश्नभरी दृष्टि से माँ की ओर देखा तो उसने पूछ लिया, ‘‘मेरे
साथ चल सकोगी?’’
‘‘कहाँ?’’
‘‘मैं लक्ष्मी बहिन से
मिलने के लिए जा रही हूँ।’’
‘‘मेरा वहाँ जाने को मन
नहीं करता।’’
‘‘क्यों क्या हुआ है? एक
समय था कि तुम कस्तूरी से मिलने के लिए व्याकुल रहा करती थीं।’’
‘‘हाँ माँ! पर वह बचपन
था, अब ज्ञान हो गया है।’’ इतना कहते-कहते सुमित्रा का मुख लाल हो गया।
मोहिनी ने मुस्कराते हुए
पूछ लिया, ‘‘कब से ज्ञान हुआ है?’’
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