उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
सुमित्रा
की आँखों में अन्यमनस्कता आ गई, मानों वह बाहरी किसी वस्तु को भी न देखती
हुई अपने मन में ही कुछ विचार कर रही हो। एकाएक उसने खड़े होकर कहा, ‘‘तुम
कहो तो चलती हूँ। परन्तु एक बात तुम सुन लो। फूफा और कस्तूरी दोनों ही
अच्छे आदमी नहीं हैं। जो कुछ वे कहते हैं, वह सत्य नहीं भी हो सकता। अधिक
सम्भव है कि वह असत्य हो।’’
‘‘अर्थात् दोनों झूठे
हैं?’’
‘‘पिताजी
ने चोरी नहीं की है। कुछ भूल हो गई है, जो सुगमता से सुधारी जा सकती थी।
वास्तव में कस्तूरी को काम दिलाने के लिए सब प्रपंच रचा गया है।’’
‘‘तुम्हारे पास इसका क्या
प्रमाण है?’’
‘‘मन
का मन साक्षी है माँ! कस्तूरी ने मुझसे प्रेम प्रकट किया था। अब
पिता-पुत्र कहीं अन्यत्र विवाह की योजना बना रहे हैं। इसके अतिरिक्त पिता
पुत्र से और पुत्र पिता से अनेक झूठ बोलते रहते हैं।’’
‘‘क्या कह रही हो
सुमित्रा?’’
‘‘मुझसे
मिलने के लिए पुत्र अनेक बार पिता से झूठ बोलता रहा है। उसका अपने पिता को
यह कहना कि वह लायब्रेरी गया है और आना मेरे पास एक साधारण झूठ है। उसको
घण्टों यहाँ बैठकर वासनामय बातें करना और घर वालों से यह कहना कि वह
पी-एच. डी. की तैयारी कर रहा है, दूसरा झूठ है।
‘‘फूफा तो बूआ से
झूठ बोलकर घर से गायब हो जाया करते हैं। वह प्रायः कह देते हैं कि मिल
देखने के लिए बस्ती गये हैं। परन्तु होते दिल्ली में ही हैं। मैं जानती
हूँ कि उनके लिए आकर्षण यहाँ है, जिसका ज्ञान वे बूआ को कराना नहीं
चाहते।’’
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