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उपन्यास >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


‘‘यह तो आप उनसे ही पूछ लेना। वे हमको तो कुछ बताते नहीं। बताने से कदाचित् लाभ भी कुछ नहीं है। मैं अनपढ़ स्त्री व्यापार की बातों में क्या राय दे सकती हूँ? पर बहिनजी, आपने तो हमारी सुध-बुध ही भुला दी है। दो दिन फोन पर बात करने का यत्न करती रही हूँ। नौकर ही उत्तर देता रहा है कि बीबीजी घर पर नहीं हैं।’’

‘‘यह तो ठीक ही है। मैं घर पर नहीं थी। कस्तूरी की सगाई का प्रबन्ध हो रहा है। इसी सम्बन्ध में समधिन के घर आना-जाना रहा है।’’

‘‘लड़की देखी है?’’

‘‘हाँ, अच्छी है।’’

‘‘तो हमको दिखाने में आपत्ति है क्या?’’

‘‘नहीं, यह बात नहीं। आपको भी दिखाऊँगी।’’

‘‘क्या बात है बहिनजी, जो आप इस प्रकार दूर-दूर रहने लगी हैं?’’

‘‘मैं तो दूर नहीं हुई, हाँ चरण ने जरूर ऐसा धोखा दिया है कि उससे मन उचाट हो गया है।’’

‘‘क्या धोखा दिया है? मुझे बताने का है अथवा नहीं?’’

‘‘इसी विचार से चुप थी। मन डरता था कि कहीं पति-पत्नी में खाई न पड़ जाय?’’

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