उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
‘‘मैं
वर्तमान डायरेक्टरों पर अविश्वास का प्रस्ताव उपस्थित कर दूँगा। उसके बाद
मेरे पक्ष के तीन डायरेक्टर होंगे, आपके पक्ष के दो। तब कस्तूरीलाल
सेक्रेटरी नियुक्त नहीं हो सकेगा।’’
‘‘परन्तु आप कस्तूरीलाल
के विरुद्ध क्यों हैं?’’
गजराज
चरणदास द्वारा हुई वास्तविक हानि नहीं बता सका। वह शरीफन वाली बात थी। न
ही वह सहस्र रुपये देने वाली बात कह सका। इससे वे कार्य, जो गजराज के लाभ
के लिए किये गए थे, प्रकाश में आने का भय था। अतः गजराज ने कह दिया,
‘‘मेरा अपना लड़का कस्तूरीलाल अब अर्थशास्त्र में एम. ए. पार कर चुका है।
उसके लिए कुछ प्रबन्ध करना है। इस स्थान पर मेरा अनुभव उसके लिए लाभदायक
सिद्ध होगा।’’
मनसाराम का अपना लड़का
बहुत छोटा था। उसकी आयु अभी
लगभग बारह वर्ष की ही थी। हाँ, उसकी लड़की राजकरणी अब सोलह वर्ष की हो गई
थी। उसे एक बात सूझी। उसने कहा, ‘‘देखो गजराजजी, मेरा मत कस्तूरी के पक्ष
में हो सकता है, यदि आप उसका विवाह मेरी लड़की के साथ स्वीकार कर लें। तब
कस्तूरी मेरा और आपका एक समान हो जायगा।’’
इस प्रस्ताव से गजराज
फड़क उठा। वह मान गया। यह निश्चय हो गया कि बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स से पहले
निश्चय किया जाय कि चरणदास यदि त्याग-पत्र दे तो कस्तूरी को अस्थायी रूप
में सेक्रेटरी नियुक्त कर दिया जाय। जब कस्तूरी और राजकरणी का विवाह हो
जायगा, तब कस्तूरी को स्थायीरूपेण मन्त्री बना लिया जायगा।
चरणदास
ने त्याग-पत्र दिया और कस्तूरीलाल अस्थायी रूप से मन्त्री बना लिया गया।
फिर उसके विवाह की बात होने लगी। लक्ष्मी मनसाराम के घर गई और लड़की को
देख आई। उनका विचार था कि लड़की साधारण रूपरेखा की है, परन्तु हर प्रकार
से स्वस्थ एवं पूर्णांगी है।
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