उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
‘‘पिताजी, मैं क्या
सहायता कर सकता हूँ?’’
‘‘तुम
ऋण उतारने का नोटिस जारी न होने दो। राज के पिता के सम्मुख मेरी सिफारिश
करके कहो कि मैं वचन देता हूँ कि एक लाख रुपया मैं एक वर्ष में ही दे
दूँगा और इतना ही धन प्रतिवर्ष देता रहूँगा।’’
‘‘उन्होंने ऋण चुकाने की
आज्ञा तो आज जारी कर दी है। वह आपको कल मिल जायगी।’’
‘‘वह नोटिस ही है न? मैं
चाहता हूँ कि मैं लिखित वचन-पत्र भेज दूँगा। तुम राज के पिता से कहकर मेरा
उत्तर स्वीकार करवा दो।’’
‘‘वे
मानेंगे नहीं। आज मेरी उनसे बातचीत हुई थी। उनका कहना था कि आपने ‘पब्लिक
फण्ड्स’ का दुरुपयोग किया है। आप अपराधी हैं। आपके लिए उचित स्थान कारागार
ही है।’’
गजराज यह सुन अवाक् बैठा
रह गया। राजकरणी ने अपने पति से पूछ लिया, ‘‘नोटिस क्या है?’’
‘‘नोटिस
यह है कि एक मास के अन्दर आठ लाख रुपये ऋण की ‘श्योरिटी’, जिसकी कीमत दस
लाख से कम न हो, दे दो अन्यथा रुपया लौटा दो। इन दो बातों के न कर सकने की
अवस्था में आप पर ‘अमानत में खयानत’ का अभियोग लगा दिया जायगा।’’
‘‘श्योरिटी किस प्रकार की
माँगते हैं?’’
‘‘मिलों के हिस्से,
इमारतें और किसी धनी-मानी व्यक्ति की जमानत।’’
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