उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
‘‘पिताजी!’’ राजकरणी ने
अपने श्वसुर से पूछा, ‘‘आपके पास कितना रुपया है?’’
‘‘मैंने अभी मुन्शी से
हिसाब मँगवाया था। मेरे पास सॉलिड श्योरिटी पाँच लाख रुपये के करीब है।’’
राजकरणी ने अपने पति से
पूछ लिया, ‘‘आप कितनी जमानत दे सकते हैं?’’
‘‘मेरे पास दो लाख के
सरकारी बॉण्ड्स हैं।’’
‘‘एक लाख के मेरे हैं।
वही जो पिताजी ने विवाह के समय दिये थे।’’
‘‘तब भी दो लाख का ज़ामिन
और चाहिए।’’
‘‘और कोई ऐसा व्यक्ति
नहीं, जो यह ज़मानत दे सके?’’
कस्तूरीलाल ने बताया,
‘‘एक है, परन्तु मुझे सन्देह है कि वह नहीं मानेगा।’’
‘‘कौन है?’’
‘‘मोहिनी
मामी हैं। उनके बीमा कम्पनी के हिस्से तीन लाख से ऊपर हैं। इसके अतिरिक्त
उनके पास नकद रुपया भी है, क्योंकि वह और हिस्से खरीदने का यत्न कर रही
हैं। अभी भी दलाल उनके लिए खरीद करने को तैयार है।’’
‘‘चरणदास कुछ नहीं कर
सकता?’’ गजराज ने पूछा।
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