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उपन्यास >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


अगले दिन वह अपने श्वसुर की कोठी पर जा पहुँचा। उसने अपने पिता की आर्थिक अवस्था का वर्णन कर दिया। फिर बोला, ‘‘क्या इस स्थिति में आप उनकी कुछ सहायता नहीं कर सकते?’’

‘‘यह रुपया मेरा तो है नहीं, जनता का है। ज्योंही रजिस्ट्रार को पता चला कि इतने बड़े कर्ज के लिए हमारे पास कुछ भी जमानत नहीं तो गजराजजी को हथकड़ी लग जायगी। यदि मैं चार्ज लेने के साथ ही यह नोटिस न देता तो मैं भी अपराधी मान लिया जाता और मुझको भी पकड़ लिया जाता। मैं इस विषय में कुछ नहीं कर सकता।

‘‘देखो कस्तूरी, वे शराब में मस्त रण्डियों के कोठों पर उनके जूते खाते देखे गए हैं। ऐसे आदमी के लिए मन में किंचित् भी सहानुभूति नहीं है।’’

इसके बाद कस्तूरीलाल कुछ नहीं बोला। रात को उसने अपनी पत्नी के सम्मुख वह सारा वृत्तान्त रखा तो उसने कहा, ‘‘मैं पिताजी का स्वभाव जानती हूँ, इसी से कहती थी कि वहाँ से कुछ भी आशा नहीं। परन्तु मैंने एक बात विचार की है। मैं स्वयं मोहिनी मामी से मिलने के लिए के लिए जाऊँगी और उनको ज़ामिन बनने के लिए तैयार कर लूँगी।’’

‘‘तुम जाओगी?’’

‘‘हाँ, इसमें कुछ हानि है?’’

‘‘हानि तो नहीं, हाँ, सफलता की आशा कम है।’’

‘‘यत्न तो करना ही चाहिए।’’

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