उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
फिर स्वयं ही कहने लगा,
‘‘मेरा विचार है कि वह शरीफन के आश्रय पल रहा है। उसका सब-कुछ शरीफन की
जेब में जा चुका है।’’
‘‘तो पिताजी, इतना कुछ तो
हम कर देंगे। दो लाख के लिए आप मोहिनी मामी को कहकर देखिये।’’ राजकरणी ने
सुझाव दिया।
‘‘मेरा कहा वह मानेगी
नहीं। मैं समझता हूँ, हमने उसके साथ बुरा व्यवहार किया है।’’
इस
अनुमान को सुन कस्तूरी और राजकरणी बहुत गम्भीर विचार में पड़ गये।
कस्तूरीलाल कोई उपाय समझ में नहीं आया। उसने कह दिया, ‘‘पिताजी, मैं तो
यही कुछ कर सकता हूँ। दो लाख के बॉण्ड्स मैं आपकी जमानत के लिए दे दूँगा।
एक लाख के राजकरणी देने के लिए कहती है। शेष दो लाख का प्रबन्ध आप कर
लीजिये। अभी एक मास का समय है। हम भी विचार करेंगे। यह भी हो सकता है कि
हम मैनेजिंग डायरेक्टर साहब को आठ लाख अर्थात् ऋण के बराबर श्योरिटी
स्वीकार करने पर राजी कर लें।’’
राजकरणी को इससे सन्तोष
नहीं था।
जब गजराज चला गया तो उसने कहा, ‘‘पिताजी दस लाख से एक पाई कम की जमानत
स्वीकार नहीं करेंगे। मैं उनके स्वभाव को जानती हूँ। साथ ही वे हमको आपके
पिता का जमानती बनते देख क्रोध से आग-बबूला हो जायँगे। मैं उनके क्रोध की
तो परवाह नहीं करती। कानून का पेट भरना चाहिए। यह तो अति लज्जा की बात
होगी कि आपके पिताजी अदालत में बेईमान सिद्ध हों और उनको कारावास का दण्ड
मिले।’’
कस्तूरी इस सम्भावना का
विचार कर भय से काँप उठा। रात-भर
वह मनसाराम को समझाने की योजनाएँ बनाता रहा। परन्तु समय पर वे सब बालू के
महल की भाँति निराधार सिद्ध हुईं।
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