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उपन्यास >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


चरणदास हँसने लगा। उसने कहा, ‘‘बुद्धि पर किसी का भी एकाधिकार नहीं है।’’

इस वार्तालाप के एक सप्ताह के बाद लक्ष्मी अपनी मोटर लेकर गई और मोहिनी तथा उसकी लड़कियों को बैठाकर अपने घर ले गई। चरणदास ने कहा, ‘‘मैं समय मिलने पर आ जाया करूँगा।’’

लक्ष्मी बोली, ‘‘नित्य भोजन के समय तुमको वहाँ अवश्य पहुँच जाना चाहिए। तुम्हारी बातों से तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि तुम अपनी इच्छानुसार ही आओगे। यह उचित नहीं है। अपने घर पर भी तो समय पर आकर भोजन करते हो। इसी प्रकार वहाँ भी आने में तुम्हें किसी प्रकार का संकोच नहीं होना चाहिए। साइकिल तुम्हारे पास है। अतः सुविधापूर्वक समय पर पहुँच सकते हो।’’

कस्तूरी, जब से उसने सुमित्रा को देखा था, माँ के कान भरता रहा था। वह कहा करता था, ‘‘माँ! मामी और उनके बच्चों को ले आओ न!’’

‘‘क्यों?’’ लक्ष्मी कभी उसके मन के भावों को जानने के लिए पूछ लेती।

वह कह देता, ‘‘इस कारण कि वे भी तो बहिनें ही हैं।’’

‘‘यह तुम्हारी बहिन यमुना है तो?’’

‘‘उसकी तो हर समय नाक चढ़ी रहती है।’’

‘‘तो क्या सुमित्रा की नाक चढ़ी हुई नहीं रहती?’’

‘‘दिखाई तो नहीं देती।’’

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