उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
इस
अभाव की पूर्ति के लिए लक्ष्मी चरणदास को लाहौर से दिल्ली ले आई थी।
दिल्ली में चरणदास का वेतन तो बढ़ गया था, परन्तु लाहौर में उनका अपना
मकान था, जो यहाँ के मकान की अपेक्षा अधिक साफ-सुथरा और हवादार था। दिल्ली
में जो मकान मिला था वह अँधेरा और गन्दा था, उसका किराया भी देना पड़ता
था।
चरणदास यहाँ आया तो
लक्ष्मी ने उसको अपनी कोठी में रहने का
निमन्त्रण दे दिया, किन्तु उसने कहा कि वह तो अपने पृथक् मकान लेकर रहेगा।
जब उन्होंने किराये पर मकान ले लिया तो पति-पत्नी दोनों ही उस मकान को भले
आदमियों के रहने लायक बनाने लगे। बिजली लगवाने पर सारी फिटिंग चरणदास ने
स्वयं ही की थी। फर्श नया बनवाया गया तो चरणदास स्वयं सामान लाया और उसने
ही उसे तैयार भी किया। दीवारों तथा दरवाज़ों पर पॉलिश भी उसने स्वयं ही
की। इस प्रकार मकान को यथासामर्थ्य सुसज्जित किया गया।
इस बीच
लक्ष्मी इनके घर में आती रही थी। बच्चों में अपने प्रति स्नेह पैदा करने
के लिए प्रायः उनके लिये खिलौने अथवा मिठाई भी वह लाया करती थी। जब भी वह
मिलने के लिए आती, कुछ-न-कुछ उनके लिए लेकर ही आती।
जब वह सप्ताह में प्रायः
एक बार जाने लगी तो गजराज ने पूछ लिया, ‘‘भाई-भाभी से बहुत मोह होता जा
रहा है क्या?’’
‘‘वह
तो पहले से ही है। अब वे दिल्ली में आये हैं तो कहीं अकेलापन अनुभव न
करें, इसलिए जाना पड़ता है। यों तो हम भी इतनी बड़ी कोठी में चार प्राणी
अकेले ही रहते हैं।’’
‘‘देखो लक्ष्मी, कोठी तो
जीवन में एक बार ही
बन सकती है। परिवार बढ़ेगा, इसमें भी सन्देह नहीं। कस्तूरी बड़ा हो रहा
है। इसका विवाह होगा, फिर बच्चे होंगे और तब हमारी कोठी के कमरे भर
जाएँगे। यमुना का विवाह तो कस्तूरी के विवाह के पहले ही हो जायगा। दामाद
आयेगा, उसके संबंधी आया-जाया करेंगे। यमुना के बच्चे होंगे और फिर हमारी
कोठी में भीड़ लग जाया करेगी।’’
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