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उपन्यास >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


बच्चे भोजन के उपरान्त थोड़ा विश्राम करते और फिर पढ़ाई में लग जाते। चरणदास अपनी परीक्षा की तैयारी करता। छः बजे लॉन में फुटबाल होता। सात से साढ़े आठ बजे तक कस्तूरी और यमुना चरणदास से हिन्दी और गणित सीखते। हिन्दी उनको स्कूल में पढ़ाई नहीं जाती थी और गणित बहुत कम पढ़ाया जाता था। ये दो विषय चरणदास उनको पढ़ाता था।

साढ़े आठ बजे भोजन कर चरणदास एक घण्टा और अपनी पढ़ाई करता और फिर साढ़े दस बजे सो जाता। यहाँ पहुँच चरणदास को एक विशेष बात यह विदित होने लगी कि पढ़े-लिखे ग्रैजुएट नित्य ही उनके यहाँ नौकरी की खोज में आया करते हैं। वे प्रायः मध्याह्न के समय गजराज से मिलने के लिए आते थे। एक दिन भोजन के बाद चरणदास और गजराज ड्राइंग-रूम में बैठे थे कि चपरासी एक कार्ड लेकर भीतर आया। कार्ड पर लिखा था, ‘सुरेन्द्र कुमार, बी० ए० एल-एल० बी०।’

गजराज ने समझा कि कोई वकील किसी मुकद्दमे के विषय में कुछ बातचीत करने आया होगा। उसने आने वाले को भीतर बुलवा लिया। जब वह भीतर आया और उसके आने का कारण पूछा गया तो वह कहने लगा, ‘‘मैं अमृतसर का रहने वाला हूँ। मेरी पढ़ाई लाहौर में हुई है। दिल्ली में प्रैक्टिस करने के लिए आया था, किन्तु यहाँ काम जम नहीं रहा है। निराश होकर अब नौकरी ढूँढ़ने लगा हूँ।

‘‘मुझे पता चला है कि आप एक बीमा कम्पनी चालू करने वाले हैं। इसमें वकीलों की, जो ‘कम्पनी लॉ’ और ‘इन्शोरेंस लॉ’ के ज्ञाता हों, आवश्यकता पड़ेगी। इस कारण आपसे मिलने के लिए चला आया हूँ।’’

‘‘आपको किससे यह सूचना मिली है?’’

‘‘कम्पनी के कागज तैयार करने के लिए आपने एक वकील को दिये हैं। उन कागजों की तैयारी में मैं भी कुछ सहयोग दे रहा हूँ।’’

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