उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
|
10 पाठकों को प्रिय 377 पाठक हैं |
दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
‘‘तो मिस्टर आनन्द ने
आपको यह सब बताया है?’’
‘‘जी नहीं। आनन्द साहब ने
तो मुझे वे कागज टाइप करने के लिए दिए थे। उनसे ही मैं यह जान पाया हूँ।’’
‘‘हमें
ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता है, जो हमारे और वकील साहब के बीच भाग-दौड़ कर
सके। मैंने आनन्द साहब से किसी चतुर मुंशी के लिए कहा था। उन्होंने अभी तक
किसी को भेजा नहीं है। यदि आप आनन्द साहब की चिट्ठी ले आते तो मैं आपसे
बातचीत कर लेता।’’
‘‘पत्र तो मैं ला सकता
हूँ।’’
‘‘ठीक है, पहले वह पत्र
ले आइये, फिर बातचीत होगी।’’
प्रसन्न-वदन
सुरेन्द्रकुमार चला गया। उसके जाने के बाद गजराज बोला, ‘‘यह वकील है।
मैंने मुन्शी माँगा है, जिसे मैं साठ रुपये मासिक वेतन दूँगा। मैंने इसके
सम्मुख कहा भी है कि मुझे मुन्शी की श्रेणी का कोई व्यक्ति चाहिए। यह
जानकर भी यह प्रसन्न होकर चला गया है।’’
‘‘मैं समझता हूँ, जब इसको
वेतन का पता चलेगा तो फिर वह नहीं आयेगा।’’
‘‘नहीं, नहीं, यह अवश्य
आयेगा और साठ रुपये की नौकरी भी स्वीकार कर लेगा।’’
‘‘क्यों, आप यह किस
प्रकार कह सकते हैं?’’
‘‘जो व्यक्ति एक
वकील-जैसा स्वतन्त्र व्यवसाय सीखकर भी नौकरी के लिए आता है, वह अति
मन्द-भाग्य और साथ ही मन्द-मति भी है।’’
|