उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
इस धन को उपजाऊ कार्यों
में लगाने के लिए गजराज ने मकानों
और इमारतों पर ऋण देने की एक फाइनेंसिंग कम्पनी खोल दी। बीमा कम्पनी का
रुपया साढ़े चार प्रतिशत पर इस कम्पनी ने ले लिया और आगे अधिक सूद पर देना
आरम्भ कर दिया।
छः मास की अवधि में कुछ
मृत्यु की घटनाएँ भी हुईं। उनकी जाँच के अनन्तर उनको धन दे दिया गया।
इस
प्रकार धड़ाधड़ रुपया आने लगा और चतुर्मुखी उन्नति होने लगी। चरणदास बहुत
ध्यान से बीमा कम्पनीज़ के साहित्य का अध्ययन कर रहा था। वह इस प्रकार
धड़ाधड़ रुपया कम्पनी के खजाने में आता देख, इसके रहस्य को समझने का यत्न
करने लगा।
बीमा कम्पनीज़ का पूर्ण
व्यवसाय उस भय पर आधारित होता
है, जो प्रत्येक मनुष्य के मन पर सदा विद्यमान रहता है। यह है मृत्यु का
भय। इस भय के साथ समाज में एकाकीपन ने इस व्यवसाय को और भी चमकाया है।
मृत्यु का भय तो था ही। संयुक्त परिवार-प्रथा शिथिल पड़ने लगी थी।
सम्बन्धियों और परिचितों में सहानुभूति की कमी और समाज में स्वार्थ की
मात्रा बढ़ने लगी थी।
इन परिस्थितियों में
प्रत्येक व्यक्ति को
संसार में स्वयं को अकेला अनुभव करने के विचार ने उसे बीमा के प्रपंच का
आश्रय ढूँढने पर विवश कर दिया।
चरणदास ने यह भी देखा कि
कम्पनी
की सफलता के लिए बीमा करने वाले एजेण्ट्स का ईमानदारी से कार्य करना
अत्यावश्यक है। यदि वे स्वास्थ्य के नियत मापदण्ड से नीचे के किसी भी
व्यक्ति का बीमा न करें तो हानि की सम्भावना पाँच प्रतिशत रह जाती है।
दूसरे, ठीक मृत्यु की दशा में बीमा की रकम तुरन्त देने से कम्पनी का नाम
होता है।
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