लोगों की राय

उपन्यास >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

377 पाठक हैं

दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


अतः उसने एजेण्ट तथा डॉक्टर्स की नियुक्ति के लिए एक जाँच बोर्ड बना दिया था। यह बोर्ड जहाँ डॉक्टर्स और एजेण्ट्स की नियुक्तियाँ करता था, वहाँ उनके काम की जाँच-पड़ताल भी करता था। ज्यों ही किसी झूठे अथवा दोषयुक्त व्यक्ति के बीमा करने का पता चलता, तुरन्त उस डॉक्टर और एजेण्ट को पृथक् कर, धोखादेही में दण्ड दिलवाने का यत्न किया जाता था।

दूसरी ओर उसने एक अन्य बोर्ड भी बनवा रखा था, जो मृत्यु का समाचार मिलते ही उसकी सत्यता की जाँच करता था।

इस प्रकार के प्रबंध से कम्पनी को लाभ हो रहा था। सेक्रेटरी की जेब भरी जा रही थी और कम्पनी का नाम दिन-दूना, रात-चौगुना हो रहा था।

चरणदास को इस प्रकार कार्य करते हुए सात वर्ष हो गये थे। इन सात वर्षों में चरणदास के पास लाखों रुपये जमा हो गये थे। गजराज खन्ना तो ठेकेदारी का काम छोड़ मिल-मालिक बन गया था।

दोनों ही अब भद्र पुरुष माने जाते थे।

चरणदास ने अब अपने लिए पृथ्वीराज रोड पर एक कोठी खरीद ली थी और वह वहाँ जाकर रहने लगा था। अब उसके घर एक लड़का भी हो गया था, जिसका नाम संजीव था।

सुमित्रा अब अपनी कार में बैठकर इन्द्रप्रस्थ कॉलेज में पढ़ने जाया करती थी। यमुना सीनियर कैम्ब्रिज की परीक्षा उत्तीर्ण कर इंग्लैण्ड के किसी कॉलेज में प्रविष्ट होने के लिए यत्न कर रही थी। कस्तूरीलाल सेंट स्टीफन्स कॉलेज में एम० ए० में पढ़ रहा था। बच्चों का गुट अभी भी वैसा ही था। यमुना और सुभद्रा परस्पर सहेली थीं। सुभद्रा प्रायः अपनी बूआ के घर ही रहा करती थी। सुभद्रा उसी स्कूल में पढ़ती थी, जहाँ से यमुना ने सीनियर कैम्ब्रिज किया था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book