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उपन्यास >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


तब तक उस औरत ने एक बर्थ पर बिस्तर लगाकर अपने आदमी को लिटा दिया था और स्वयं उसके पाँवों की ओर बैठ गई थी। गजराज डिब्बे में आया तो उसने उस औरत को नीचे की दूसरी बर्थ पर अपने लिए जगह बनाने के लिए कह अपना बिस्तर ऊपर की बर्थ पर लगाना आरम्भ कर दिया। उस औरत ने कहा, ‘‘इतनी तो मेहरबानी कीजिए कि आप इतमीनान से नीचे आराम कीजिए। मैं ऊपर की सीट पर चढ़ जाऊँगी।’’

’’नहीं-नहीं, आपको कष्ट होगा।’’

‘‘जी नहीं, कोई तकलीफ नहीं होगी। देखिए, आपको मेरी कसम है, आप इसी बर्थ पर रहेंगे।’’

‘‘विवश गजराज ने अपना बिस्तर नीचे की बर्थ पर लगा लिया। इससे दोनों में झिझक खुल गई और उस औरत ने अपनी कहानी बताते हुए कहा, ‘‘हम जिला रायबरेली के एक गाँव के रहने वाले हैं। ये मेरे खाविन्द हैं। हमारी शादी हुए दस वर्ष हो गये हैं। हमारे कोई औलाद नहीं हुई तो किसी हकीम ने इन्हें ताकत की दवाई देनी शुरू कर दी। मैं इनको बार-बार कहती थी कि मुझे औलाद की जरूरत नहीं, लेकिन ये माने ही नहीं।

‘‘औलाद तो हुई नहीं, हाँ इनके मुख और सारे शरीर पर फुन्सियाँ निकल आईं। अब इनका इलाज होने लगा। ज्यों-ज्यों दवा की गई, कुछ आराम नहीं हुआ, बल्कि मर्ज बढ़ता ही गया। अब इनका सारा जिस्म गलकर ‘पस’ बन गया और डॉक्टरों ने जवाब दे दिया है। अब आखिरी दवा खुदा के घर ले जाकर कर रही हूँ।’’

‘‘क्या करते थे ये?’’

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