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उपन्यास >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


‘‘ये फैजाबाद में तहसीलदार थे और वहाँ के एक हकीम ने ही यह करामात की है।’’

‘‘ओह! क्या नाम है इनका?’’

वह तो औरत कुछ झिझकी। फिर कहने लगी, ‘‘मिर्ज़ा फखरूद्दीन। मुझ खादिमा को शरीफन कहते हैं। हम घर के मामूली हैसियत के आदमी हैं। इन्होंने बहुत पैसा पैदा किया था, मगर सब खर्च हो गया है। अपने जेवर बेचकर आखिरी कोशिश कर रही हूँ।’’

‘‘ओह!’’ गजराज बहुत आश्चर्य में उस औरत का मुख देख रहा था। अपनी ओर गजराज को देखते पा उस औरत की आँखें झुक गईं और उसके गालों पर सुरखी दौड़ गई। यह देख गजराज को अपनी भूल का ज्ञान हुआ। उसने विषय बदलकर बात आरम्भ की थी कि बीमार व्यक्ति की धीमी-सी आवाज़ सुनाई दी, ‘‘जान! पानी पिलाओ।’’

वह औरत उठी और उसने चीनी का एक प्याला निकालकर सुराही में से पानी लिया। फिर उसने उसके मुख पर लिपटी पट्टी खोली। गजराज ने देखा उसका सारा मुख कचालू की भाँति गला हुआ है। यह देखकर उसका जी मितलाने लगा। फिर भी शरीफन ने पट्टी एक ओर रख दी और उसको चम्मच से पानी पिलाने लगी।

गजराज उस औरत की पति-भक्ति देखकर अत्यन्त प्रभावित हुआ। वह मन-ही-मन विचार कर रहा था, यह औरत धन्य है! जब वह पानी पिला पुनः पट्टियाँ बाँध चुकी तो अपने पति के पाँव के समीप बैठकर कहने लगी, ‘‘ये पट्टियाँ तो मुसाफिरों की आँखों से इनकी बुरी हालत को छिपाने के लिए बाँधी हैं। इन पर कोई दवाई नहीं लगाई गई।’’

‘‘ये कब से बीमार हैं?’’

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