उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
चरणदास
ने इन्स्पेक्टर की यह रिपोर्ट शरीफन को पढ़कर सुनाई तो उसने कह दिया, ‘‘यह
ठीक है कि यह बीमा मैंने अपने भाई को दिखाकर करवाया था। इसमें न तो बीमा
एजेण्ट ने, न ही डॉक्टर ने कोई रिश्वत ली है। केवल दो गवाहों ने झूठ बोला
है। मगर वे मेरे रिश्तेदार थे। यह इंस्पेक्टर भी झूठी और मेरे मुआफिक
रिपोर्ट देने के लिए तैयार था, अगर मैं इसकी मुँहमाँगी मुराद पूरी कर
देती। मैं मिस्टर खन्ना के पास इसीलिए आई थी कि अगर वे मुझ पर तरस नहीं
खायेंगे तो मैं वही कीमत, जो इंस्पेक्टर माँग रहा था, उसकी खिदमत में नज़र
कर दूँगी। उनके स्थान पर आप मिल गये हैं और मैं समझती हूँ कि मैंने गलती
नहीं की।’’
चरणदास ने इंस्पेक्टर की
रिपोर्ट को फाइल में से निकालकर पूछा, ‘‘यह मैं ज़ाया कर सकता हूँ
मगर...।’’
‘‘मैं आपकी बहुत ही
शुक्रगुजार रहूँगी।’’
‘‘बस?’’
‘‘अगर आप पसंद करें तो
बाँदी खिदमत में रहने के लिए तैयार है।’’
‘‘तो दिल्ली में ही रह
जाओगी?’’
‘‘और क्या करूँगी?’’
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